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राज ठाकरे ने कहा था- उद्धव से राजनीतिक मतभेद हैं, विवाद हैं, झगड़े हैं, लेकिन यह सब महाराष्ट्र के आगे बहुत छोटी चीज हैं।
MNS चीफ राज ठाकरे और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के राजनीति में साथ आने की खबरों के बीच शिवसेना ने शनिवार को X पर कहा- मुंबई और महाराष्ट्र के हित के लिए एकजुट होने का समय आ गया है। पार्टी कार्यकर्ता मराठी गौरव की रक्षा के लिए तैयार हैं।
इससे MNS और UBT के साथ आने की अटकलें तेज हो गई है। इससे पहले 19 अप्रैल को राज ठाकरे ने अपने चचेरे भाई उद्धव के साथ राजनीतिक मेल-मिलाप पर कहा था कि, ‘ उद्धव से राजनीतिक मतभेद हैं, विवाद हैं, झगड़े हैं, लेकिन यह सब महाराष्ट्र के आगे बहुत छोटी चीज हैं।
महाराष्ट्र और मराठी लोगों के हित के लिए साथ आना कोई बहुत बड़ी मुश्किल नहीं है।’ राज ठाकरे ने अभिनेता और निर्देशक महेश मांजरेकर के यू-ट्यूब चैनल पर यह बातें कही थीं।
इस पर उद्धव ठाकरे ने कहा कि वह छोटी-मोटी लड़ाइयां छोड़कर आगे बढ़ने को तैयार हैं, बशर्ते महाराष्ट्र के हितों के खिलाफ काम करने वालों को बर्दाश्त न किया जाए।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि अगर राज और उद्धव साथ आते हैं तो हमें खुशी होगी। मतभेद मिटाना अच्छी बात है।
भाजपा नेता- राज को बाहर निकालने के पीछे उद्धव की पत्नी का हाथ
शिवसेना और मनसे के बीच गठबंधन को लेकर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और महाराष्ट्र के राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले ने कहा, ‘साथ आना या गठबंधन बनाना उनका विशेषाधिकार है।’ दूसरी ओर भाजपा नेता नितेश राणे ने शिवसेना UBT के प्रमुख उद्धव से सवाल किया कि क्या गठबंधन के लिए उन्होंने पत्नी रश्मि ठाकरे से परमिशन ली है।
नितेश राणे ने एक पॉडकास्ट में कहा कि ऐसे मामलों में पत्नी की राय ज्यादा मायने रखती है। राणे ने कहा कि राज ठाकरे को शिवसेना से बाहर निकालने के पीछे उद्धव की पत्नी रश्मि ठाकरे का ही हाथ था। उस समय दोनों चचेरे भाइयों के बीच कोई मतभेद नहीं था।
MNS- UBT गठबंधन का महाराष्ट्र की राजनीति पर असर
2024 में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में राज ठाकरे की पार्टी का खाता तक नहीं खुला था। उद्धव ठाकरे की पार्टी भी 288 सीटों की विधानसभा में महज 20 सीट पर सिमट गई। अगर ये पार्टियां साथ आती है तो महाराष्ट्र में इसका सीधा असर देखने को मिल सकता है।
- मराठी वोटबैंक साथ आ सकते है- पिछले एक दशक से मराठी अस्मिता का मुद्दा कमजोर पड़ गया है, क्योंकि शिवसेना बंट चुकी है और MNS सीमित हो चुकी है। दोनों के साथ आने से ‘मराठी मानुष’ की राजनीति को एकजुट प्लेटफॉर्म मिल सकता है। इससे मुंबई, ठाणे, पुणे जैसे शहरी इलाकों में असर पड़ेगा।
- शिंदे गुट कमजोर हो सकता है- 2024 चुनाव में शिंदे गुट को ‘असली शिवसेना’ का फायदा मिला है। अगर राज और उद्धव साथ आते हैं, तो लोग भावनात्मक आधार पर ठाकरे नाम के साथ जुड़ सकते हैं।
- BJP की मुश्किलें बढ़ा सकती है- मुंबई की सबसे बड़ी नगर पालिका पर कब्जा शिवसेना की प्रतिष्ठा का मुद्दा रहा है। 2017 में शिवसेना अकेले लड़ी और टॉप पार्टी रही, MNS कमजोर थी। अगर दोनों साथ आते हैं, तो BJP के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं।
NCP सांसद सुले बोलीं- अगर बालासाहेब जीवित होते, तो बहुत खुश होते।
- कांग्रेस के मुखिया हर्षवर्धन सपकाल ने कहा, ‘जब राज ठाकरे कहते हैं कि उद्धव ठाकरे के साथ उनके मुद्दे महाराष्ट्र से बड़े नहीं हैं, तो उनका इशारा यही है कि भाजपा महाराष्ट्र को नुकसान पहुंचा रही है। भाजपा महाराष्ट्र की भाषा और संस्कृति को कमजोर करने की कोशिश कर रही है। राज ठाकरे का रुख इसका समर्थन करता है।’
- शिंदे गुट की शिवसेना के नेता संजय निरुपम ने कहा, ‘दो जीरो हमेशा एक जीरो बनाते हैं। उद्धव ने मुस्लिम वोट के लिए कांग्रेस से गठबंधन किया और मुस्लिम वोटों पर भरोसा किया। जब यह रणनीति काम नहीं आई है, वे राज ठाकरे की ओर झुक रहे हैं। यह महाराष्ट्र के हित के लिए नहीं है बल्कि उनके खुद के अस्तित्व के बारे में है। लेकिन वे साथ मिलकर भी महायुति को चुनौती नहीं दे सकते।’
- NCP (SCP) सांसद सुप्रिया सुले बोलीं, ‘राज ठाकरे ने कहा कि राज्य के मुद्दे उनके व्यक्तिगत विवाद से बड़े हैं। यह मेरे लिए खुशी की खबर है। अगर बालासाहेब जीवित होते, तो बहुत खुश होते। अगर दोनों भाई महाराष्ट्र के लिए एक साथ आ रहे हैं, तो हमें इसका तहे दिल से स्वागत करना चाहिए।
इंटरव्यू में राज ठाकरे ने शिंदे, भाजपा और शिवसेना पर बात की…
1. यह निजी स्वार्थ का मामला नहीं
राज ठाकरे ने कहा, “मुझे नहीं लगता कि एक साथ आना और एक साथ रहना कोई बहुत कठिन बात है। सवाल केवल इच्छाशक्ति का है। यह मेरी निजी इच्छा या स्वार्थ का मामला नहीं है। मेरा मानना है कि हमें महाराष्ट्र की बड़ी तस्वीर देखनी चाहिए। मेरा मानना है कि महाराष्ट्र के सभी राजनीतिक दलों के मराठी लोगों को एक साथ आकर एक पार्टी बनानी चाहिए।”
2.शिंदे के सवाल पर बोले- किसी और के अधीन काम नहीं करूंगा
एकनाथ शिंदे के सत्ता में आने और एतराज की बात पर राज ने कहा, “पहली बात तो यह कि शिंदे का जाना या विधायकों का टूटना राजनीति का अलग हिस्सा बन गया। जब मैंने शिवसेना छोड़ी तो कई विधायक और सांसद मेरे पास आए, लेकिन मेरे मन में एक ही बात थी कि अगर बालासाहेब को छोड़ दूंगा तो किसी और के अधीन काम नहीं करूंगा। उस समय यही स्थिति थी।”
3. भाजपा के साथ जाने पर कहा- राजनीति में क्या हो जाए, कह नहीं सकते
महेश मांजरेकर ने भाजपा के साथ जाने पर सवाल किया तो राज ठाकरे ने कहा, “मैं महाराष्ट्र के बारे में या मराठी लोगों के लिए जो कुछ भी कह सकता हूं या कर सकता हूं, मैं करूंगा। मेरा भाजपा के साथ आना राजनीतिक होगा, लेकिन मेरी सोच उनकी सोच से मेल नहीं खाती। हालांकि राजनीति में कब क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। राजनीति में सब कुछ बदल जाता है। यहां सब कुछ इतनी तेजी से हो रहा है कि आप नहीं बता सकते कि कब क्या हो जाएगा।”
2005 में अलग हुए थे दोनों भाई-
2002 के BMC चुनाव में जीत से पार्टी पर उद्धव की पकड़ मजबूत हो गई थी। शिवसैनिकों को भी यह बात समझ में आने लगी थी कि आने वाले समय में उद्धव ठाकरे ही शिवेसना के प्रमुख बनेंगे। 30 जनवरी 2003 को महाराष्ट्र के महाबलेश्वर में शिवसेना का अधिवेशन रखा गया। इसमें उद्धव ठाकरे को अध्यक्ष बनाए जाने का प्रस्ताव पेश हुआ। राज ठाकरे से ही ये प्रस्ताव पेश कराया गया।
उद्धव के कार्यकारी अध्यक्ष बनते ही राज ठाकरे की अपने चाचा से नाराजगी बढ़ने लगी। शिवसेना में उद्धव को उत्तराधिकारी घोषित किए जाने के बाद 27 नवंबर 2005 को राज ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद राज ने अपनी पार्टी ‘महाराष्ट्र नव निर्माण सेना’ बनाई थी। तब से दोनों के बीच रिश्ते अच्छे नहीं रहे।
9 मार्च 2006 को राज ठाकरे ने नई पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की शुरुआत की और दोनों के रास्ते अलग हो गए। 17 नवंबर 2012 को बालासाहेब ठाकरे का देहांत हो गया और राज-उद्धव को एक साथ जोड़ने वाली कड़ी भी टूट गई।
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मनसे चीफ राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के राजनीति में साथ आने की खबरों पर संजय राउत ने कहा कि अब तक गठबंधन नहीं हुआ है। अभी इमोशनल टॉक चल रही है। इससे पहले उन्होंने एक शर्त रखी थी। पूरी खबर पढ़ें..
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