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फोटो AI जनरेटेड है
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि केवल तत्काल तीन तलाक पर रोक है, तलाक-ए-अहसन पर नहीं। हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच के जस्टिस विभा कंकनवाड़ी और जस्टिस संजय देशमुख ने कहा कि मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम के तहत तलाक की परिभाषा में तलाक के वे रूप शामिल हैं, जिनका प्रभाव तत्काल होता है, या जिन्हें बदला नहीं जा सकता है।
इस कमेंट के साथ ही कोर्ट ने जलगांव के एक शख्स और उसके माता-पिता के खिलाफ दर्ज शिकायत पर मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम की धारा 4 के तहत 2024 में दर्ज मामले को खारिज कर दिया।
इस धारा के तहत कोई भी मुस्लिम व्यक्ति जो अपनी पत्नी को तीन तलाक देता है, जिसे तलाक-ए-बिद्दत कहा जाता है, उसे तीन साल तक की जेल की सजा दी जाएगी।
औरंगाबाद बेंच के तीन कमेंट…
- इस मामले में व्यक्ति ने अपनी पत्नी को तलाक-ए-अहसन दिया था जो सिर्फ तलाक की घोषणा होती है। तलाकनामा घोषणा के तीन महीने बाद दिया गया था।
- तलाक-ए-अहसन का कानूनी प्रभाव केवल 90 दिनों के बाद ही लागू हुआ। इस दौरान दंपती ने दोबारा साथ रहना शुरू नहीं किया था। यानी मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत तलाक लागू हो गया।
- अधिनियम के तहत तीन तलाक अपराध है। जबकि तलाक-ए-अहसन अपराध नहीं है, ऐसे में अगर व्यक्ति और उसके माता-पिता के खिलाफ केस किया जाता है तो कानून का दुरुपयोग है।
2021 में हुई थी शादी, 2023 में तलाक का ऐलान किया
रिपोर्ट्स के मुताबिक तनवीर अहमद नाम के शख्स ने 2021 में शादी की थी। वह 2023 में पत्नी से अलग हो गए। तनवीर ने गवाहों की मौजूदगी में दिसंबर 2023 में तलाक-ए-अहसन का ऐलान किया था। पत्नी ने जलगांव के भुसावल बाजार पेठ पुलिस स्टेशन में एक FIR दर्ज कराई। सने यह भी आरोप लगाया कि उसके ससुराल वाले इस फैसले का हिस्सा थे और उन्हें भी समान रूप से जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।
हालांकि तनवीर ने अपनी याचिका में दावा किया कि अधिनियम के प्रावधानों के तहत तलाक का यह तरीका दंडनीय नहीं है। कोर्ट ने कहा कि दर्ज FIR तलाक के मुद्दे से जुड़ी है, इसलिए यह केवल पति के खिलाफ ही सीमित है और ससुराल वालों को इसमें शामिल नहीं किया जा सकता है। अगर मामला जारी रखा जाता है तो यह कानून का दुरुपयोग होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ तलाक-ए-बिद्दत पर लगाई रोक
सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त 2017 को केवल तीन तलाक बोल कर शादी तोड़ने को असंवैधानिक बताया। तलाक-ए-बिद्दत कही जाने वाली इस प्रक्रिया पर अधिकतर मुस्लिम उलेमाओं ने भी कहा था कि यह कुरान के मुताबिक नहीं है।
इस्लाम में तलाक देने के तीन तरीके
- पहला है तलाक-ए-अहसन, इस्लामिक विद्वानों के मुताबिक इसमें पति, बीवी को तब तलाक दे सकता है जब उसके पीरियड्स न चल रहे हों। इस तलाक के दौरान 3 महीने एक ही छत के नीचे पत्नी से अलग रहता है, जिसे इद्दत कहते हैं। यदि पति चाहे तो 3 महीने बाद तलाक वापस ले सकता है। अगर ऐसा नहीं होता तलाक हमेशा के लिए हो जाता है। लेकिन पति-पत्नी दोबारा शादी कर सकते हैं।
- दूसरा है तलाक-ए-हसन, इसमें पति तीन अलग-अलग मौकों पर बीवी को तलाक कहकर/लिखकर तलाक दे सकता है। वह भी तब, जब उसके पीरियड्स न हों। लेकिन इद्दत खत्म होने से पहले तलाक वापसी का मौका रहता है। तीसरी बार तलाक कहने से पहले तक शादी लागू रहती है, लेकिन बोलने के तुरंत बाद खत्म हो जाती है। इस तलाक के बाद भी पति-पत्नी दोबारा शादी कर सकते हैं। लेकिन पत्नी को हलाला (दूसरी शादी और फिर तलाक) से गुजरना पड़ता है।
- तीसरा है तीन तलाक या तलाक-ए-बिद्दत, जिसमें पति किसी भी समय, जगह, फोन पर, लिखकर पत्नी को तलाक दे सकता है। इसके बाद शादी तुरंत टूट जाती है और इसे वापस नहीं लिया जा सकता है।
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लखनऊ में आस्ट्रेलिया से लौटते पति ने बोला तीन तलाक, 12 साल से दहेज के लिए कर रहा था प्रताड़ित
लखनऊ के हुसैनगंज में रहने वाले एक युवक ने आस्ट्रेलिया से लौटकर पत्नी को दहेज के लिए तीन तलाक दे दिया। पीड़िता का कहना कि शादी के बाद से ही पूरा परिवार दहेज के लिए प्रताड़ित करने लगा और पति के आस्ट्रेलिया जाते ही घर से निकाल दिया। पति के तीन तलाक देने के बाद कहीं सुनवाई न होने पर डीसीपी मध्य से शिकायत की। हुसैनगंज पुलिस पीड़िता की शिकायत पर एफआईआर दर्ज कर मामले की जांच कर रही है। पढ़ें पूरी खबर…
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