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20 मिनट पहले

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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 17 अप्रैल को कहा था कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं।

दिल्ली यूनिवर्सिटी के कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को कहा- संसद सर्वोच्च है और उसके ऊपर कोई संस्था (अथॉरिटी) नहीं हो सकती है। संविधान में सांसद ही अंतिम मालिक है। चुने हुए प्रतिनिधि (सांसद) ही यह तय करेंगे कि संविधान कैसा होगा। उनके ऊपर कोई और सत्ता नहीं हो सकती।

धनखड़ ने आगे कहा- एक प्रधानमंत्री ने आपातकाल लगाया था, उन्हें 1977 में जवाबदेह ठहराया गया था। इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि संविधान जनता के लिए है और यह उन्हें सुरक्षित रखने का दस्तावेज है। संविधान में कहीं नहीं कहा गया है कि संसद से ऊपर कोई और संस्था है।

दरअसल, 5 दिन पहले ही 17 अप्रैल को धनखड़ ने कहा था- अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं। संविधान का अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट को मिला विशेष अधिकार लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ 24×7 उपलब्ध न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है। जज सुपर पार्लियामेंट की तरह काम कर रहे हैं।

धनखड़ का यह बयान सुप्रीम कोर्ट के हाल ही के उस कमेंट पर आया था, जिसमें कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल अगर कोई बिल राष्ट्रपति को भेजते हैं तो राष्ट्रपति को उस पर 3 महीने में फैसला लेना होगा। इसपर हो रही आलोचना पर भी आज धनखड़ ने कहा- किसी संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति द्वारा कहे गए शब्द, देश के सर्वोच्च हित को ध्यान में रखकर ही बोले जाते हैं।

धनखड़ ने पूछा- जस्टिस वर्मा केस में FIR क्यों नहीं हुई

  • राज्यसभा के प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘हमारे पास ऐसे न्यायाधीश हैं जो कानून बनाएंगे, जो कार्यकारी कार्य करेंगे, जो ‘सुपर संसद’ के रूप में भी कार्य करेंगे। उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी, क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता है।’
  • ‘लोकतंत्र में चुनी हुई सरकार सबसे अहम होती है और सभी संस्थाओं को अपनी-अपनी सीमाओं में रहकर काम करना चाहिए। कोई भी संस्था संविधान से ऊपर नहीं है।’
  • ‘जस्टिस वर्मा के घर अधजली नकदी मिलने के मामले में अब तक FIR क्यों नहीं हुई? क्या कुछ लोग कानून से ऊपर हैं। इस केस की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन जजों की इन-हाउस कमेटी बनाई है। इसका कोई संवैधानिक आधार नहीं है। कमेटी सिर्फ सिफारिश दे सकती है, लेकिन कार्रवाई का अधिकार संसद के पास है।’
  • ‘अगर ये मामला किसी आम आदमी के घर होता, तो अब तक पुलिस और जांच एजेंसियां सक्रिय हो चुकी होतीं। न्यायपालिका हमेशा सम्मान की प्रतीक रही है, लेकिन इस मामले में देरी से लोग असमंजस में हैं।’

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