तहव्वुर राणा द्वारा अब तक भोजन से संबंधित कोई विशेष मांग नहीं की गई है. हालांकि उसे मानक प्रोटोकॉल के अनुसार वही भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है जो किसी अन्य आरोपी को दिया जाता है. एनआईए के जांचकर्ता तहव्वुर राणा से हर दिन आठ से दस घंटे तक पूछताछ कर रहे हैं. ताकि 2008 में पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा द्वारा किए गए कायराना हमलों की बड़ी साजिश की जांच की जा सके. इन हमलों में 166 लोग मारे गए थे और 238 से अधिक घायल हुए थे.
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तहव्वुर राणा के कुरान मांगने पर क्या कहता है जेल मैन्युअल और क्या कहता है भारत का संविधान. आृइए इसकी पड़ताल करते हैं… भारत में, कैदियों का धार्मिक किताबें मांगना मौलिक अधिकार नहीं है, लेकिन यह उनके कुछ संवैधानिक और कानूनी अधिकारों के दायरे में आ सकता है.
क्या है संविधान का नजरिया
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 सभी व्यक्तियों को धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार देता है. इसके तहत धर्म का पालन, अभ्यास और प्रचार शामिल है. कैदी भी इस अधिकार के हकदार हैं, लेकिन यह अधिकार पूर्ण नहीं है. इसे ‘सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य’ के आधार पर सीमित किया जा सकता है. वहीं, अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है जिससे कैदी गरिमापूर्ण जीवन जी सकें. इसमें धार्मिक प्रथाओं का सीमित अभ्यास शामिल हो सकता है.
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इस बारे में क्या है जेल मैनुअल
जेल मैनुअल (जैसे प्रिजन एक्ट, 1894 और राज्य-विशिष्ट नियम) कैदियों को धार्मिक प्रथाओं की अनुमति देते हैं, जिसमें धार्मिक किताबें पढ़ना शामिल हो सकता है. कई जेलों में धार्मिक किताबें (जैसे कुरान, रामचरित मानस, भगवद गीता, बाइबिल, गुरु ग्रंथ साहिब आदि) उपलब्ध कराई जाती हैं. हालांकि, यह जेल प्रशासन की विवेकाधीन शक्ति के अधीन है. अगर कोई किताब उत्तेजना फैला सकती है या व्यवस्था के लिए खतरा हो सकती है, तो उसे प्रतिबंधित किया जा सकता है.
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अदालत भी देती है मान्यता
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने कई मामलों में कैदियों के धार्मिक अधिकारों को मान्यता दी है. उदाहरण के लिए, कैदियों को प्रार्थना करने, धार्मिक त्योहार मनाने, या धार्मिक प्रतीकों (जैसे टोपी, तिलक आदि) का उपयोग करने की अनुमति दी गई है. बशर्ते यह जेल की सुरक्षा और अनुशासन के खिलाफ न हो. अगर कोई कैदी अपनी आस्था के अनुसार धार्मिक किताब मांगता है, तो सामान्यतः उसे प्रदान की जाती है, जब तक कि कोई विशेष सुरक्षा कारण न हो.
मांग ठुकरा सकता है जेल प्रशासन
धार्मिक किताबें मांगना किसी कैदी के अधिकारों में नहीं शामिल है. जेल प्रशासन किताबों की सामग्री की जांच कर सकता है ताकि यह सुनिश्चित हो कि वे हिंसा, घृणा, या अन्य अवैध गतिविधियों को बढ़ावा न दे रही हों. जेल के संसाधनों और नियमों के आधार पर, सभी मांगों को पूरा करना संभव नहीं हो सकता. भारत में, कैदियों के अधिकार जेल मैनुअल और भारतीय कानूनों, जैसे कि प्रिजन एक्ट, 1894 और संबंधित राज्य नियमों, के तहत निर्धारित होते हैं. कैदियों को पढ़ने के लिए किताबें और लिखने के लिए पेन-कागज उपलब्ध कराने का प्रावधान जेल प्रशासन की नीतियों पर निर्भर करता है.
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हर जेल में होती है लाइब्रेरी
जेलों में आमतौर पर लाइब्रेरी की सुविधा होती है, जहां से कैदी पढ़ने के लिए किताबें ले सकते हैं. यह उनके सुधार और पुनर्वास का हिस्सा माना जाता है. हालांकि, किताबों का चयन जेल प्रशासन के नियमों के अधीन होता है, और कुछ सामग्री (जैसे कि उत्तेजक या प्रतिबंधित सामग्री) पर रोक हो सकती है. कैदियों को लिखने के लिए पेन और कागज दिए जा सकते हैं, खासकर अगर वे पढ़ाई कर रहे हों, कानूनी दस्तावेज तैयार कर रहे हों, या अपने केस से संबंधित काम कर रहे हों. लेकिन यह भी जेल के नियमों और सुरक्षा चिंताओं पर निर्भर करता है. कई बार, सुरक्षा कारणों से पेन जैसे सामान को सीमित या निगरानी के साथ दिया जाता है.
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संवैधानिक अधिकारों में स्पष्ट नहीं
संवैधानिक अधिकारों में यह स्पष्ट नहीं है कि कैदी को किताब, पेन, या कागज अनिवार्य रूप से मिले. हालांकि, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत, कैदियों को गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार है, जिसमें शिक्षा और आत्म-सुधार के अवसर शामिल हो सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में कैदियों के सुधार और शिक्षा के महत्व को रेखांकित किया है.
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