हजार वर्ष पुराना मंदिर, उपेक्षा के साए में
देवरिया जनपद के नगर पंचायत बरियारपुर में बीहड़ जंगलों के बीच स्थित यह प्राचीन मंदिर एक हजार वर्षों से श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र रहा है. इसके पास बहती गंडक नदी कभी इसकी शोभा बढ़ाती थी, लेकिन समय के साथ आई बाढ़ और कटान ने इस क्षेत्र को काफी नुकसान पहुंचाया. सालों तक यह मंदिर उपेक्षित रहा. अवैध कब्जों ने इसके अस्तित्व को संकट में डाल दिया था. आसपास की जमीनें भू-माफियाओं के कब्जे में थीं, और जंगल का अंधाधुंध कटान पर्यावरण संतुलन को भी प्रभावित कर रहा था. पहले के जनप्रतिनिधियों द्वारा ध्यान न दिए जाने से लोगों में निराशा घर कर गई थी.
2024 जब उम्मीदें फिर से जागीं
वर्ष 2024 में मां कोटेश्वरी धाम की तस्वीर बदलनी शुरू हुई. रामपुर कारखाना विधानसभा क्षेत्र के विधायक सुरेन्द्र चौरसिया ने इस स्थल की दुर्दशा को गंभीरता से लिया. उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार की ‘वंदन योजना’ के अंतर्गत यहां के विकास के लिए 2 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत करवाई.
इस धनराशि से मंदिर का जीर्णोद्धार, नदी किनारे घाटों का निर्माण, पक्के रास्ते, सौंदर्यीकरण, रोशनी की व्यवस्था और पर्यावरण संरक्षण के लिए पौधरोपण जैसे कार्य तेजी से शुरू हुए.
स्थानीय प्रशासन की सक्रिय भागीदारी
नगर पंचायत बैतालपुर की अध्यक्षा किरण राजभर और उनके प्रतिनिधि ने भी इस बदलाव में अहम भूमिका निभाई. उन्होंने प्रशासनिक स्तर पर लगातार फॉलोअप किया और खुद कई बार स्थल पर जाकर निरीक्षण किया. स्थानीय नागरिकों और श्रद्धालुओं की समस्याओं को प्राथमिकता देते हुए उन्होंने साफ-सफाई, रास्तों के चौड़ीकरण और मंदिर तक पहुंचने के मार्ग को सुगम बनाने में सक्रिय योगदान दिया.
इतिहास और आस्था का प्रतीक
मंदिर के महंत अंबिका दास बताते हैं कि यह स्थान न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है. उनके अनुसार, वर्षों पहले यह स्थल तपस्वियों और साधकों की साधना स्थली रहा है. माँ कोटेश्वरी की महिमा दूर-दूर तक फैली हुई है. महंत का मानना है कि इस विकास कार्य से क्षेत्र में आध्यात्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी लाभ पहुंचेगा.
गर्व, आस्था और जागृति की वापसी
मां कोटेश्वरी धाम अब एक बार फिर जीवंत हो उठा है. श्रद्धालुओं की वापसी होने लगी है, स्थानीय युवाओं में नया जोश है और लोगों में गर्व की भावना है कि उनका इतिहास, उनकी आस्था और उनकी प्रकृति अब सुरक्षित और संरक्षित है. यह केवल एक मंदिर का पुनर्निर्माण नहीं, बल्कि सामूहिक चेतना, जनभागीदारी और जिम्मेदार नेतृत्व की एक प्रेरणादायक मिसाल है.
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