बहराइच. सैयद सलार मसूद गाजी की दरगाह के लिए मशूहर यूपी के बहराइच में कला का एक ऐसा नमूना भी है जिसकी चर्चा कम ही होती. अगर आप कभी बहराइच जाएं तो उसका दीदार जरूर करें. उसका स्थापत्य आपको कई सदी पीछे ले जाकर खड़ा कर देगा और आप पहुंच जाएंगे मुगलों के आगमन से पहले के काल में. ऐसा काल जो भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में सल्तनत काल कहलाया.
हम बात कर रहे हैं बहराइच में सैयद सलार मसूद गाजी की दरगाह से 500 मीटर पहले तुगलक काल में स्थापित ‘कदम रसूल’ की. कदम रसूल में बने चार पिलर गुंबदों को देखकर लोग दांतों तले उंगली दबा लेते हैं. असल में इनका इस्तेमाल पहले इस स्थान पर उजाला करने के लिए किया जाता था. एक गुंबद में 120 ताख हैं. इस तरह चार गुंबदों के कुल 480 ताखों को जब दिये से जगमगाया जाता रहा होगा, तो नजारा देखते ही बनता होगा.
कैसे हुआ निर्माण
पुराने जमाने में लोग घरों में रोशनी के लिए मिट्टी के चिराग जलाते थे. इन्हें रखने के लिए मकान में ताख बनाया जाता था. इसी तर्ज पर बड़े-बड़े महलों और धार्मिक स्थलों में एक-दो नहीं बल्कि कई ताखों वाली मीनार की गुंबद बनाई जाने लगी. शाम होते ही इन ताखों में दिये जला दिए जाते, जिसकी रोशनी दूर-दूर तक फैल जाती. एक प्रकार के स्ट्रीट लाइट का काम करते थे. कहा जाता है कि ‘कदम रसूल’ का निर्माण तुगलक वंश के शासक फिरोजशाह तुगलक ने अपने आरामगाह (फार्म हाउस) के रूप में करवाया था.
कहीं नहीं ऐसा
कई ऐतिहासिक जगहों पर दिये जलाने वाले ताख दिख जाएंगे, लेकिन बहराइच के कदम रसूल में बने चार गुंबदों वाले ताख कम ही देखने को मिलेगा. यहां के ताख को खास तरीके से बनाया गया है ताकि जलने वाले दिये हवा और पानी से सुरक्षित रहें.
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