चंबल सेंचुरी की वादियों में अफगानिस्तान, पाकिस्तान, श्रीलंका और म्यांमार से आए पक्षियों के कलरव से वातावरण जीवंत हो उठा है. 425 किलोमीटर में फैली इस सेंचुरी में नवंबर से पक्षियों का आना शुरू हो गया है और यह सिलसिला मार्च तक चलेगा. इन पक्षियों में हवासीर (पेलिकन), राजहंस (फ्लेमिंगो), और समन (बार हेडेटबूल) जैसी दुर्लभ प्रजातियां शामिल हैं.
चंबल घाटी में पक्षियों का बसेरा
साइबेरिया, रूस और मलयेशिया जैसे देशों से हजारों किलोमीटर का सफर तय कर ये पक्षी चंबल घाटी पहुंचते हैं. ठंड के दौरान इन देशों में भोजन और प्रजनन की समस्याओं के कारण ये पक्षी चंबल की नम भूमि को अपना अस्थायी निवास बनाते हैं. यहां का अनुकूल मौसम और प्रजनन के लिए आदर्श परिस्थितियां इन्हें आकर्षित करती हैं.
पर्यटकों के लिए स्वर्ग
प्रवासी पक्षियों की उपस्थिति ने चंबल घाटी को पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण केंद्र बना दिया है. सहसों, भरेह, पचनद और लालपुरा जैसे स्थानों पर इन पक्षियों का झुंड देखने बड़ी संख्या में पर्यटक पहुंच रहे हैं. रेत पर घंटों बैठकर इन पक्षियों की अठखेलियां देखना एक शानदार अनुभव है.
संरक्षण के लिए खास इंतजाम
चंबल सेंचुरी के रेंजर के.के. त्यागी ने बताया कि पक्षियों की सुरक्षा के लिए विभाग सतर्क है. नदी तटों पर गश्त बढ़ा दी गई है और यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि पक्षियों को किसी प्रकार की असुविधा न हो.
प्रमुख आकर्षण
इस बार चंबल में कामन टील, नार्दन शिवेलर, ग्रेट कारमोरेंट, टफटिड डक, पोचार्ड जैसी प्रजातियों के पक्षी पहुंचे हैं. इसके अलावा ब्रामनीडक (सुरखाव), स्पूनवी हॉक, और डायटर (स्नेक बर्ड) जैसे पक्षी भी यहां का आकर्षण बढ़ा रहे हैं.
सेंचुरी का भविष्य
सोसायटी फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर के महासचिव डॉ. राजीव चौहान का कहना है कि इस बार चंबल में प्रवासी पक्षियों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है. यह न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि स्थानीय पर्यटन के लिए भी शुभ संकेत है.
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