उत्तर प्रदेश के संभल नगर के चंदौसी कस्बे में खुदाई में एक बड़ी और 150 साल पुरानी प्राचीन बावड़ी मिली है. ये 400 वर्ग मीटर में फैली है. इसके कई स्तर हैं. स्थापत्य के तौर पर ये एक शानदार संरचना बताई जा रही है, जिससे इस क्षेत्र की ऐतिहासिकता के प्रति लोगों में दिलचस्पी और बढ़ गई है. जहां संभल को बसाने और संवारने में मुगलों की भूमिका थी तो चंदौसी को हिंदू राजा द्वारा बसाया गया. देश में उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक कई प्रसिद्ध और प्राचीन बावड़ियां हैं. क्या आपको मालूम है कि बावड़ी, तालाब और कुएं में अंतर होता है.
आगे बढ़ने से पहले चंदौसी की बावड़ी के बारे में जानते हैं. इसे बहुत पुख्ता और खूबसूरत तरीके से बनाया गया है. खुदाई के बाद ये जिस तरह से सामने आई, उससे लगता है कि 150 साल पहले इसे बेहतरीन स्थापत्य कला और संरचना के साथ बनाया गया था. इस दौरान इसमें छोटे-छोटे 05 कमरे मिले, जो इसकी जटिल वास्तुकला को दिखाते हैं. स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यह बावड़ी ‘रानी की बावड़ी’ के नाम से जानी जाती थी. इसे मिट्टी से भर दिया गया था.
राजस्थान की प्रसिद्ध चांद की बावड़ी.
क्या होती हैं बावड़ियां
जब एक सीमित जगह में पत्थर की संरचना बनाकर उसमें पानी के स्टोरेज और उसके आने की व्यवस्था की जाती थी तो उसे बावड़ी कहते थे. इसमें सीढ़ियों के जरिए नीचे पानी तक पहुंचा जाता था. ये स्थापत्य की दृष्टि से बेहतरीन होती थीं. ये मूलतौर पर जल प्रबंधन का काम करती थीं. बावड़ियों को स्टीपवेल्स (Stepwells), वाव, बावड़ी, या बावली भी कहा जाता है. पानी के संरक्षण की ये कला विशेष रूप से भारत में विकसित हुईं.
कुआं और तालाब भी जल प्रबंधन का काम करते हैं लेकिन बावड़ी अपने स्थापात्य और संरचना की दृष्टि से उनसे अलग होती है. भारतीय उपमहाद्वीप में, विशेषकर राजस्थान में बावड़ियां जल संरक्षण का एक पारंपरिक तरीका थीं. बावड़ियों को अक्सर वास्तुशिल्प की उत्कृष्ट कृति माना जाता है. ये सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व की भी होती हैं.
भारत में पांचवीं सदी से 18वीं सदी के बीच बड़े पैमाने पर देश में बावड़ियां बनाई गईं. इनका अपना महत्व हुआ करता था. (image generated by Meta AI)
बावड़ियों का निर्माण क्यों किया जाता था?
जल संरक्षण – बावड़ियों को शुष्क क्षेत्रों में वर्षा के पानी को एकत्रित करने और भूजल स्तर को बनाए रखने के लिए बनाया जाता था.
पीने का पानी- ये बड़े समुदायों को पीने का पानी मुहैया कराती थीं.
पशुओं के लिए पानी – पशुओं के लिए पानी का एक स्रोत के रूप में भी काम करती थीं.
धार्मिक महत्व – बावड़ियों को धार्मिक स्थलों के रूप में भी माना जाता था. इनका उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों के लिए किया जाता था.
सामाजिक केंद्र – बावड़ियां गांवों के सामाजिक केंद्र के रूप में भी काम करती थीं, जहां लोग इकट्ठा होते थे, बातचीत करते थे और आराम करते थे. इसलिए ज्यादातर बावड़ियों के साथ कमरों और कक्ष भी बनाए जाते थे.
राजस्थान के नाथद्वारा की एक प्राचीन बावड़ी. (Photo – Sanjay Srivastava)
कैसे बनाई जाती थीं बावड़ियां
बावड़ियां आमतौर पर पत्थर या ईंटों से बनाई जाती थीं. इनमें कई कई मंजिलों वाली होती थीं. प्रत्येक मंजिल पर पानी के स्तर के आधार पर सीढ़ियां होती थीं. बावड़ियों की दीवारों पर अक्सर जटिल नक्काशी और चित्रकारी होती थी.
बावड़ियों का महत्व
वास्तुशिल्प – बावड़ियां भारतीय वास्तुकला का एक अद्भुत नमूना हैं. इनकी जटिल संरचना और सुंदर सजावट इनकी कलात्मकता को दिखाती है.
इतिहास – बावड़ियां इतिहास के साक्षी हैं. ये हमें प्राचीन काल के लोगों के जल प्रबंधन और जीवन शैली के बारे में भी बताती हैं.
पर्यावरण – बावड़ियां जल संरक्षण के लिए एक सतत समाधान थीं. आज भी, जल संकट के समय, बावड़ियों से सीख लेने की जरूरत है.
संभल के चंदौसी में 150 साल पुरानी बावड़ी मिली है और ये काफी अच्छी तरह से बनाई हुई है.
बावड़ियां तालाब और कुएं से कैसे अलग होती हैं?
बावड़ियां आमतौर पर पत्थर से बनाई जाती थीं. इन्हें एक संरचना की शक्ल दी जाती थी. आमतौर पर ये चौकोर होती थीं, जिसमें सीढ़ियों से उतरकर पानी तक जाते थे. तालाब मिट्टी का बना होता है, कई अपने आप बन जाते हैं तो कई खोदकर बनाए जाते हैं, जिसमें बरसात के पानी के जरिए जल संरक्षण होता था. भारत में एक जमाने में बहुत तालाब होते थे. वहीं कुआं एक गोल आकार का एक गड्ढा होता था, जिसमें गहराई से खोदकर उसमें से पानी निकाला जाता था. इसके चारों ओर सीमेंट या पत्थर की दीवार बना दी जाती थी, जिसमें ऊपर लोहे की घिरनी लगाकर रस्सी से बाल्टी खींची जाती है.
तालाब आमतौर कई काम आते हैं, ये पशुओं को पानी देने से लेकर कपड़ा धोने, नहाने के काम आते रहे हैं. लेकिन आधुनिक शहरी जीवनशैली में तालाब पाटे जा रहे हैं. शहरों के तालाब अब कमोवेश गायब ही हो चुके हैं. अलबत्ता गांव में तालाब जरूर खुले में मिल जाते हैं. कुआं पहले देश में हर संपन्न घरों में जरूर होता था, अब ये भी नई जीवनशैली में खत्म हो रहे हैं. हालांकि छोटे कस्बों और गांवों में घरों और कम्युनिटी के बीच कुएं जरूर मिल जाएंगे.
भारत में कितनी बावड़ियां हैं
भारत में बावड़ियों की सटीक संख्या के बारे में बताना मुश्किल है, क्योंकि इनमें कई बावड़ियां अब नष्ट हो चुकी हैं. कई संरक्षित हैं या उपयोग में हैं. ऐतिहासिक और पुरातात्विक आंकड़ों के आधार पर उनकी संख्या का अनुमान जरूर लगाया जा सकता है.
– भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और राज्य सरकारों द्वारा संरक्षित बावड़ियों की संख्या लगभग 700-800 है.
– इनमें से अधिकांश गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यों में हैं.
– ग्रामीण इलाकों और शहरों में ऐसी हजारों बावड़ियां मौजूद हैं, जो समय के साथ मिट्टी में दब गईं या अतिक्रमण के कारण गायब हो गईं.
– इसका अनुमान लगभग 3000-4000 तक लगाया जा सकता है.
– पूरे भारत में इतिहास के अलग कालखंडों में बनाई गई बावड़ियों की कुल संख्या 5000-7000 हो सकती है.
– यह संख्या समय के साथ घटती जा रही है क्योंकि कई बावड़ियां खराब रखरखाव और शहरीकरण के कारण नष्ट हो चुकी हैं.
गुजरात:
– बावड़ियों का गढ़ है. रानी की वाव, अडालज की वाव जैसी प्रसिद्ध बावड़ियां यहां हैं
– यहां पर अनुमानित तौर पर 1000 से अधिक बावड़ियां थीं.
राजस्थान:
– चाँद बावड़ी, रानी जी की बावड़ी जैसी संरचनाओं के लिए ये राज्य प्रसिद्ध है
– यहां पर अनुमानित तौर पर 800-1000 बावड़ियां हैं या रही होंगी.
मध्य प्रदेश:
– खजुराहो और मांडु के क्षेत्रों में कई बावड़ियां हैं
– अनुमानित तौर 500-700 बावड़ियां रही होंगी.
दिल्ली और उत्तर भारत:
– अग्रसेन की बावड़ी और अन्य छोटी बावड़ियां यहां पाई जाती हैं.
– अनुमानित तौर पर यहां 200-300 बावड़ियां रही होंगी.
कर्नाटक और दक्षिण भारत:
– हम्पी और विजयनगर जैसे क्षेत्रों में बावड़ियां हैं.
– यहां पर अनुमानित तौर पर 100-200 बावड़ियां रही होंगी.
देश की कुछ प्रसिद्ध बावड़ियां
1. रानी की वाव (गुजरात) – ये गुजरात के पाटन में है. इसे 11वीं शताब्दी में बनाया गया था. इसे सोलंकी वंश की रानी उदयमती ने अपने पति राजा भीमदेव प्रथम की स्मृति में बनवाया था. ये अब यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है. बावड़ी में अद्भुत नक्काशी और सात स्तर हैं, जिनमें भगवान विष्णु के दशावतार को चित्रित किया गया है.
2. चांद बावड़ी (राजस्थान) – ये दौसा जिले के आभानेरी में है. इसका निर्माण 9वीं शताब्दी में किया गया. इसे राजा चंद ने चौहान वंश के शासनकाल में बनवाया. ये 13 मंजिला है और 3,500 सीढ़ियां हैं. यह भारत की सबसे गहरी और बड़ी बावड़ियों में एक है.
3. अडालज की वाव (गुजरात) – ये गांधीनगर के अडालज में है. इसे 15वीं शताब्दी में बनाया गया था. इसे रानी रुदाबाई ने अपने पति राणा वीर सिंह की याद में बनवाया था. ये पांच मंजिला संरचना है और इसकी नक्काशी उत्कृष्ट है. इसका निर्माण हिंदू और इस्लामी वास्तुकला के मिश्रण से हुआ.
4. अग्रसेन की बावड़ी (दिल्ली) – ये बावड़ी दिल्ली में कनॉट प्लेस के करीब है. इसे 14वीं शताब्दी में अग्रसेन महाराज द्वारा बनवाया गया था. इसमें 108 सीढ़ियां हैं. ये दिल्ली के प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों में एक है.
5. रानी जी की बावड़ी (राजस्थान) – ये बूंदी में है. इसे 17वीं शताब्दी में बनवाया गया था. इसे रानी नथावती ने बनवाया था. यह बावड़ी जटिल नक्काशी और मूर्तिकला के लिए प्रसिद्ध है. इसे “क्वीन स्टेपवेल” भी कहा जाता है.
6. पुष्करनी बावड़ी (हम्पी, कर्नाटक) – ये हम्पी में है. इसे विजयनगर साम्राज्य के दौर में15वीं शताब्दी में बनवाया गया था. यह हम्पी के मंदिर परिसर में स्थित है. इसका उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों और जल संग्रहण के लिए किया जाता था.
7. बाइड़ी बावड़ी (राजस्थान) – इसे झुंझुनू में बनवाया गया. माना जाता है कि इसे 18वीं शताब्दी में बनवाया गया. यह छोटी लेकिन गहरी बावड़ी है. इसमें संगमरमर की मूर्तियां और स्तंभ संरचना देखने को मिलती है.
Tags: Sambhal, Sambhal News, Water conservation, Water Resources
FIRST PUBLISHED : December 23, 2024, 13:08 IST
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