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कोतला रोड ऑटो स्टैंड पर कुछ ऑटो चालकों से बात करने पर उनके गुस्से और निराशा का सामना करना पड़ा. दिल्ली के ऑटोवाले, जो कभी ‘आप’ सरकार के सबसे बड़े समर्थक थे, अब दूसरी पार्टियों की ओर देख रहे हैं. आखिर उनके अंदर ऐसी भावना क्यों हैं? इसी सवाल को जानने के लिए हमने उनसे बात की और उनकी समस्याएं जानने की कोशिश की.

उनकी समस्याएं क्या हैं?
ऐप-आधारित बाइक टैक्सियों का बढ़ता प्रभाव: ऑटो चालकों का कहना है कि ऐप-आधारित बाइक टैक्सियों ने उनका काम छीन लिया है. उनका तर्क है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी इन टैक्सियों को अवैध करार दिया है, लेकिन फिर भी ये दिल्ली की सड़कों पर बेधड़क चल रही हैं. अब तो एक सवारी हमें मिलती ही नहीं, क्योंकि वे बाइक से जाना पसंद करती हैं. एक ऑटोवाले ने नाराजगी जताते हुए ये बात कही. उनका कहना है कि ऐप आधारित कैब ने पहले ही ऑटो टैक्सी के बिजनस पर असर डाला हुआ है.

ई-रिक्शा का प्रभाव: बिना किसी नियम के चलने वाले ई-रिक्शा भी उनकी आमदनी पर बड़ा असर डाल रहे हैं. ये रिक्शा कम किराए में यात्रियों को सुविधा देते हैं, जिससे ऑटोवालों को प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल हो रहा है.

महंगे संचालन खर्च: सीएनजी के बढ़ते दाम, वाहन की मरम्मत और परमिट रिन्यूअल की लागत ने उनकी कमाई के रास्ते बंद कर दिए हैं.

फोटो चालान का मुद्दा: हम सवारी से बात करने के लिए बस रुकते हैं कि जाना कहां है, और इतने में पुलिस फोटो खींचकर चालान भेज देती है,” एक अन्य ऑटोवाले ने बताया. इस प्रक्रिया से वे बेहद परेशान हैं.

परमीट फीस: ऑटो वालों का कहना है कि परमिट फ़ीस को ख़त्म किया गया लेकिन आज भी परमिट बनाने के लिए जब तक दलाल को हजार रुपये ना दो तब तक ओपन मिक नहीं बनता है यानी कि ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट को भ्रष्टाचार पहले से ज़्यादा हो गया है

आप सरकार से नाराजगी
ऑटो चालकों का कहना है कि आम आदमी पार्टी की सरकार आयी ही ऑटो वालों की वजह से थी. उनका कहना है कि हम उनके आंदोलन के सारथी थे. उन्होंने ‘आप’ पार्टी पर भरोसा करके उन्हें वोट दिया था, लेकिन पिछले 10 साल में उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ. अगर वे कुछ करना चाहते तो अब तक कर चुके होते. अब सब कुछ चुनाव के लिए कहा जा रहा है.

कांग्रेस पर अविश्वास
कांग्रेस को लेकर भी उनका रुख सकारात्मक नहीं है. उन्होंने शीला दीक्षित के समय की भ्रष्टाचार की घटनाओं को याद करते हुए कहा, “50,000 रुपये देकर परमिट लेना पड़ता था. ऐसी सरकार को हम फिर से नहीं चाहते.”

बीजेपी से उम्मीदें क्यों?
हालांकि, कई ऑटोवाले इस बार बीजेपी को मौका देने के बारे में सोच रहे हैं. हमने यूपी में देखा कि गरीबों को घर दिए गए. अगर बीजेपी दिल्ली में आई तो हमें उम्मीद है कि वे हमारे लिए भी ऐसा करेंगे. ये बात एक ऑटो चालक ने कही.

दिल्ली के ऑटोवाले सिर्फ वादों से थक चुके हैं. उन्हें ठोस समाधान चाहिए, चाहे वह अवैध बाइक टैक्सियों पर रोक हो, या उनके संचालन लागत में कमी. इस बार वे उन पार्टियों को चुनने का मन बना रहे हैं जो उनकी समस्याओं को गंभीरता से लें और उनके लिए बेहतर भविष्य सुनिश्चित करें.

Tags: Arvind kejriwal, Delhi

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