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ट्रायल कोर्ट ने घटना के करीब 28 साल बाद 2015 में फैसला सुनाते हुए सभी आरोपियों को सबूतों की कमी के आधार पर बरी कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को हाशिमपुरा नरसंहार मामले में 10 दोषियों को जमानत दे दी। मामला साल 1987 का है। उत्तर प्रदेश के प्रॉविंशियल आर्म्ड कॉन्स्टब्युलरी (PAC) के अफसरों और जवानों ने करीब 35 लोगों की हत्या की थी।
लाइव लॉ के अनुसार जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच के सामने 4 दोषियों (समी उल्लाह, निरंजन लाल, महेश प्रसाद और जयपाल सिंह) की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट अमित आनंद तिवारी ने दलील दी कि दिल्ली हाईकोर्ट ने गलत तथ्यों के आधार पर ट्रायल कोर्ट का फैसला पलटा था।
ट्रायल कोर्ट ने घटना के करीब 28 साल बाद 2015 में फैसला सुनाते हुए सभी आरोपियों को सबूतों की कमी के आधार पर बरी कर दिया था। हालांकि, दिल्ली हाईकोर्ट ने 2018 में 16 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई। एडवोकेट तिवारी ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, लेकिन सभी 2018 से जेल में हैं। इस वजह से उन्हें जमानत दी जाए।
क्या है हाशिमपुरा नरसंहार
मामला 22 मई, 1987 को उत्तर प्रदेश के मेरठ का है। शहर में सांप्रदायिक तनाव था। PAC की 41वीं बटालियन की सी-कंपनी के जवानों ने शहर के हाशिमपुरा इलाके में करीब 45 मुस्लिमों को घेर लिया।
इसके बाद उन्हें शहर से बाहर ले जाकर करीब 35 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी।ट्रायल को कोर्ट से बरी होने के बाद प्लाटून कमांडर सुरेन्द्र पाल सिंह समेत 19 PAC जवानों के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में मामला दायर किया गया।
मुकदमे के दौरान 3 आरोपियों की मौत हो गई। बाकी 16 लोगों को हाईकोर्ट ने IPC की धारा 302 (हत्या), 364 (अपहरण), 201 (सबूत मिटाने), 120-B (आपराधिक साजिश) के तहत दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। हालांकि, उत्तर प्रदेश की क्राइम ब्रांच और क्रिमिनल इंवेस्टिगेशन डिपार्टमेंट ने अपनी रिपोर्ट में PAC के 66 जवानों को दोषी ठहराया था।
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