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Raja Balbhadra Singh Story: राजा-रानी की कई कहानियां आपने सुनी होंगी. लेकिन हम आपके लिए एक ऐसे राजा की कहानी लेकर आए हैं, जिन्हें आज भी याद किया जाता है. उनसे जुड़े किस्से बहुत प्रसिद्ध है. ऐसा भी कहा जाता है कि इन राजा का सिर कट गया था. लेकिन इसके बावजूद भी वो अंग्रेजों से लड़ते रहे थे. कहानी है बहराइच के चहलारी रियासत के राजा बलभद्र सिंह स्वतंत्रता संग्राम की, जो आजादी के दीवाने थे. उन्होंने 18 साल की उम्र में ही अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे. कहा जाता है कि सिर कटने के बाद भी वह संघर्ष करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे. जिनके वंशजों ने बहराइच जिले में आज भी इनकी तलवार को संजोकर रखा हुआ है, हालांकि तलवार में अब जंग लग गया है.

कौन थे राजा बलभद्र सिंह?
आदित्य भान सिंह बताते हैं कि स्वतंत्रता संग्राम के तराई के हीरो राजा बलभद्र सिंह का जन्म 10 जून सन 1840 को बहराइच के चहलारी राज्य के महसी तहसील क्षेत्र में हुआ था. उनके पिता का नाम राजा श्रीपाल सिंह और मां का नाम महारानी पंचरतन देवी था.चहलारी रियासत पर कश्मीर से आए रैकवार राजपूतों का शासन होता था. राजा श्रीपाल साधु प्रवृत्ति के थे और अल्पायु में ही कुंवर बलभद्र का राज्याभिषेक कर राज्य कार्य से विरत हो जाना चाहते थे, लेकिन बलभद्र उन्हें समझा-बुझाकर उनके प्रस्ताव को अस्वीकार कर देते थे.

18 साल की उम्र में बने थे राजा
आखिरकार बलभद्र सिंह किशोरावस्था में चहलारी के राजा बने. बाल्यकाल से ही निडर और पराक्रमी बलभद्र सिंह युद्ध कौशल में भी महारथी थे. उदारता और संवेदनशीलता के कारण ही राज्य की जनता पूरी तरह से शोषण मुक्त होकर सुख शांति से जीवनयापन कर रही थी. सेना में प्रत्येक जाति धर्म के बहादुर युवकों को भर्ती किया गया, जिसका नेतृत्व अमीर खां कर रहे थे. भिखारी रैदास जैसे बहादुर योद्धा भी सेना में ओहदेदार पदों पर थे.

पांचवीं पीढ़ी के पास है उनकी तलवार
राजा बलभद्र सिंह के वंशज आदित्य भान सिंह बहराइच जिले के शेख दाहिर गांव में रहते हैं. आदित्य भान सिंह ने आज भी राजा बलभद्र सिंह की तलवार को संजोकर रखा हुआ है और उन्होंने लखनऊ में स्थित संग्रहालय में तलवार को रखने की अपील भी की है. लेकिन उनकी अपील स्वीकार नहीं की गई.

Tags: Bahraich news, Local18, UP news

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