किसी गाँव में जब कोई किसान खेत में बीज बो रहा हो या फसल काट रहा हो तब दिन भर उसके साथ रहिये. आप देखेंगे कि किसान सबका पेट भरने के लिए दिन-रात कितनी परिश्रम करता है. इससे आपके हृदय में किसान के प्रति प्रेम और स्नेह जगेगा, प्रकृति के प्रति आपकी कृतज्ञता बढ़ेगी और पर्यावरण के प्रति आप और अधिक संवेदनशील हो जाएँगे.
एक दिन स्कूल में आधा दिन बच्चों के साथ बच्चे बन कर रहिए और आधा दिन शिक्षक बनकर. जब तक आप किसी के गुरु नहीं बनेंगे तब तक आपके भीतर स्नेह, ममता और करुणा नहीं जागृत होगी क्योंकि गुरु के प्रेम में कोई प्रतिबंध नहीं होता. हमारे ग्रंथों में कहा गया है, ‘शिष्यात् इच्छेत् पराजयम’ माने हर गुरु यही चाहते हैं कि ‘मेरे शिष्य से ही मेरी पराजय हो और किसी से नहीं.’ अर्थशास्त्र, राजनीति, कला या अध्यात्म किसी भी क्षेत्र में हर गुरु की यही इच्छा होनी चाहिए कि उनके शिष्य उनसे आगे बढ़ें और जो विद्या उन्होंने प्राप्त की वह और अधिक लोगों तक पहुँचे .
जब आप स्कूल के शिक्षक बन कर काम करेंगे तब आपको यह भी पता चलेगा कि बच्चों का पालन कैसे करना चाहिए. कई बार जब हम व्यस्त होते हैं तो बच्चों को डे केयर होम में छोड़ देते हैं और वहाँ उनके शिक्षक उनसे जूझते रहते हैं . इसलिए बच्चों के व्यवहार में सुधार कैसे लाना है यह समझने के लिए आपको एक दिन शिक्षक बन कर देखना चाहिए .
इसी तरह से एक दिन पागलख़ाने जाकर देखिये. वहाँ सभी पागल कुछ न कुछ बोलते या चिल्लाते रहेंगे तो क्या आप उन पर क्रोध करेंगे? नहीं, आप वहाँ से मुस्कुराते हुए बाहर आ जाएंगे .
आप सोचेंगे कि ‘अरे, यह व्यक्ति तो पागल है, कुछ भी बोल रहा है.’ लेकिन आम जीवन में आप लोगों की आलोचना के प्रति काफी संवेदनशील हो जाते हैं. यदि कोई थोड़ा सा भी कुछ कह दे तो आपके दिल पर आघात हो जाता है और आप रोते रहते हैं या फिर क्रोधित हो जाते हैं. आपको लगता है कि “मैं तो सच्चाई के मार्ग पर चल रहा हूँ फिर भी लोग मुझे गाली दे रहे हैं.”
जैसे आप पागलखाने के लोगों के शब्दों को गंभीरता से नहीं लेते, ऐसे ही सोचिए कि दुनिया में भी बहुत से पागल हैं. आप खुद भी पागल बनकर देखिये . आपके भीतर कोई अहंकार नहीं रहेगा. आप भीतर से निखर जायेंगे और हर परिस्थिति में मुस्कुराते हुए आगे बढ़ पाएंगे .
जब आप कारागृह में जाकर वहाँ के कैदियों से बात करेंगे तो आपको पता चलेगा कि उन्होंने क्रोध में अपने होश खोकर कोई अपराध कर दिया और अब वे उसे भुगत रहे हैं. आपके दिल में उनके प्रति करुणा जगेगी . जिस व्यक्ति के जीवन में करुणा नहीं है वह वास्तव में जीवन नहीं जी रहा है. जिन्हें अपराधी कह कर जेल में डालते हैं, उनके भीतर भी इंसानियत है. एक अपराधी के भीतर भी एक पीड़ित व्यक्ति है जो सहायता के लिए पुकार रहा है. वास्तव में जो ज्ञान और मार्गदर्शन हमें जीवन में मिला वह उस अपराधी को नहीं मिल पाया इसीलिए वह उस स्थिति में है. क्या पता कभी आप भी ऐसी परिस्थिति में पड़ जाते लेकिन आपने अपने मन पर नियंत्रण रखा और भगवान की दया से आप सन्मार्ग पर चल रहे हैं . जब आपके भीतर यह भाव जगेगा तब आपके व्यक्तित्व में एक सुंदरता निखर आएगी.
एक दिन अस्पताल का भ्रमण कीजिये. वहाँ के ऐसे मरीजों से मिलिए जिनकी हालत बहुत गंभीर है. इससे ये आभास होता है कि जीवन कितना अस्थाई है और इसलिए जीवन में हमें जो भी समय मिला है वह हमारे लिए एक अनमोल उपहार है. जब आप समय को एक उपहार के रूप में स्वीकार करते हैं, तो जीवन के प्रति आपका दृष्टिकोण बदल जाता है. समय के चक्र में हर घटना—चाहे वह सुखद हो या दुखद—अपना महत्व रखती है. सुखद घटनाएँ आपको आनंद, शांति और संतुलन प्रदान करती हैं जबकि प्रतिकूल परिस्थितियाँ जीवन में गहराई और समझ लाती हैं. समय का हर पहलू कुछ न कुछ सीखने का अवसर होता है जो आपको और अधिक सशक्त और सक्षम बनाता है.
हर व्यक्ति को जीवन में यह सभी अनुभव लेने चाहिए. जब हम अलग-अलग लोगों से संपर्क करते हैं, उन सब के बीच रहते हैं तब हम अपने आप को बेहतर समझ पाते हैं. हमारे मन में यह प्रश्न
उठना चाहिए कि “मैं कौन हूं, मेरा स्रोत क्या है और मेरा उद्देश्य क्या है?” यदि ये प्रश्न हमारे मन में जाग जाएँ तो हमारे जीवन से विकार अपने आप दूर हो जाएंगे और हमारा हृदय शुद्ध हो जाएगा .
गुरुदेव श्री श्री रविशंकर
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर एक मानवतावादी और आध्यात्मिक गुरु हैं। उन्होंने आर्ट ऑफ लिविंग संस्था की स्थापना की है, जो 180 देशों में सेवारत है। यह संस्था अपनी अनूठी श्वास तकनीकों और माइंड मैनेजमेंट के साधनों के माध्यम से लोगों को सशक्त बनाने के लिए जानी जाती है।
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