एम्स में किया गया डेमो।
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
दिल्ली-एनसीआर में दमघोंटू हवा की वजह से सांसों का आपातकाल लगा है। वहीं, दिल्ली एम्स ने भारी और जानलेवा रसायनों से भरी इस हवा का पहली बार लाइव डेमो दिखाया। चार अलग-अलग तरह की सांस नली वाले डेमो में पीएम 10 और पीएम 2.5 के अलावा पीएम 1 व पीएम 1.5 आकार वाले अति सूक्ष्म प्रदूषकों के घातक परिणाम भी साफ तौर पर देखे जा सकते हैं।
डॉक्टरों के अनुसार, अति गंभीर श्रेणी के एक्यूआई में सांस लेने पर पीएम 2.5 के कण सबसे पहले श्वास नली के आसपास चिपकते हैं। फिर धीरे-धीरे ये कण नली के छेद को निशाना बनाते हैं और उसे छोटा करना शुरू कर देते हैं। नली का छेद छोटा होने से सांस लेने में परेशानियां होने लगती हैं और उनके फेफड़ों को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाती, जिसके चलते फेफड़ों की कार्य प्रणाली भी कमजोर होने लगती है।
काले दमा का बढ़ जाता है खतरा
दिल्ली एम्स के पल्मोनरी विभाग के वरिष्ठ डॉ. करन मदान ने बताया कि जब भी एक्यूआई का स्तर गंभीर या उससे अधिक पहुंचता है तो तीन से चार सप्ताह में ही सांस नली का प्रभावित होना शुरू हो सकता है। यह समय के साथ-साथ काला दमा यानी सीओपीडी नामक बीमारी का स्वरूप लेना लगता है। यूं तो स्वास्थ्य पर प्रदूषण का कई तरह से असर पड़ता है, लेकिन सबसे पहला निशाना फेफड़ा होता है।
कोलेस्ट्रॉल, रक्तचाप जैसी बीमारियों का भी जोखिम
फेफड़ों के अलावा, सांस के जरिये रक्त में पहुंचने वाले प्रदूषण के कण कोलेस्ट्रॉल, रक्तचाप, क्रोनिक किडनी रोग जैसी बीमारियों को भी बढ़ावा देते हैं। यही कारण है कि प्रदूषण की वजह से भी उन लोगों को हार्ट अटैक आने की आशंका बढ़ जाती है, जो पहले से दिल के रोगी हैं या फिर जिनमें कोलेस्ट्रॉल की मात्रा अधिक है और उन्हें कोरोनरी ब्लॉकेज की समस्या है, जिसके बारे में उन्हें पहले से पता नहीं है। जहरीली हवा न केवल हमारे फेफड़ों पर असर डालती है बल्कि दिल के दौरे, स्ट्रोक और यहां तक कि बचपन में मोटापे का खतरा भी बढ़ा देती है।
स्टेरॉयड, इंजेक्शन तक देना पड़ रहा
डॉ. करन मदान ने बताया कि पिछले कुछ समय से दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ने के कारण एम्स की ओपीडी पर साफ असर दिखाई दे रहा है। अस्थमा अटैक के साथ-साथ इनहेलर की जरूरत पड़ रही है। कई मरीजों को स्टेरॉयड और इंजेक्शन तक देना पड़ रहा है। अभी तक कई अध्ययन ऐसे सामने आए हैं कि लंबे समय तक प्रदूषण का एक्सपोजर गर्भवती महिलाओं में प्रीमैच्योर प्रसूति को बढ़ावा देता है।
21 लाख भारतीयों की जान गई वायु प्रदूषण से
आंकड़ों की मानें तो अकेले 2021 में वायु प्रदूषण ने 21 लाख भारतीयों की जान ले ली। ऐसा इसलिए क्योंकि पीएम 2.5 कण हमारे रक्त प्रवाह में घुसपैठ करते हैं और विभिन्न अंगों तक पहुंचने के बाद हृदय रोग, स्ट्रोक, अस्थमा और तंत्रिका संबंधी समस्याओं का जोखिम पैदा करते हैं।
सांस के जरिये 24 घंटे में 10,000 लीटर हवा जाती है फेफड़ों में
सामान्य रूप से एक इन्सान का फेफड़ा करीब नौ इंच लंबा होता है। दिनभर में यानी 24 घंटे में वह 10 हजार लीटर हवा सांस में लेता है और सांस लेते समय फेफड़े का आकार बढ़कर साढ़े 10 इंच तक जाता है। इसका वजन लगभग 2.2 पाउंड यानी 0.99 किलो होता है। एक स्वस्थ वयस्क के फेफड़ों की औसत क्षमता लगभग 6 लीटर होती है। हालांकि, फेफड़ों का आकार और क्षमता उम्र, शारीरिक बनावट और लिंग के आधार पर भिन्न हो सकती है, लेकिन जब भी वायु प्रदूषण की वजह से फेफड़े प्रभावित होते हैं तो उनकी कार्य क्षमता में गिरावट आती है। यह लंबे समय तक रहे तो वापस पहले जैसी स्थिति में लाना काफी मुश्किल हो सकता है। योग और व्यायाम के जरिये अधिकतम 40 फीसदी तक फेफड़ों की कार्यक्षमता की रिकवरी संभव है।
-जैसा कि पलमोकेयर रिसर्च एंड एजुकेशन (प्योर) फाउंडेशन के निदेशक डॉ. संदीप साल्वे ने बताया
हवा में कई घातक रसायन
दिल्ली एम्स के प्रोफेसर डॉ. जावेद ने बताया कि इस समय दिल्ली और एनसीआर की हवा किसी भी हालत में सांस लेने लायक नहीं है। हमने एक अध्ययन किया है, जिसमें पीएम 2.5 का स्तर काफी अधिक था। एम्स ने एक ऐसा उपकरण भी बनाया है जो हवा में मौजूद घातक रसायनों की पहचान काफी आसानी से कर सकता है। उस उपकरण में यह देखा है कि निकल, क्रोमियम, रेमेडियम, लेड, नाइट्रोजन सहित कई तरह के जोखिम भरे रसायन हमें हवा में मिले हैं, जिनके लंबे समय तक संपर्क से कैंसर को बढ़ावा मिलता है।
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