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3 मिनट पहलेलेखक: शिवेंद्र गौरव

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सर्दियां बढ़ते ही हर साल की तरह दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में स्मॉग का कहर जारी है। दिल्ली के कुछ इलाकों में AQI यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स 500 तक पहुंच गया। यह बेहद खतरनाक स्तर का प्रदूषण कहा जाता है।

दिल्ली से सटे हरियाणा के गुरुग्राम और उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद और नोएडा जैसे इलाके गैस चैंबर बन गए हैं। इसके मद्देनजर दिल्ली और उससे सटे NCR के तहत आने वाले हरियाणा और यूपी के जिलों में स्कूल बंद कर दिए गए हैं।

फरवरी में बोर्ड एग्जाम, फिर भी स्कूल बंद करना मजबूरी

दिल्ली, उत्तर प्रद्रेश और हरियाणा में 10वीं के बोर्ड एग्जाम फरवरी में शुरू हो रहे हैं। उसके पहले जनवरी में बच्चों के प्रैक्टिकल एग्जाम चलेंगे। अभी स्कूलों में प्री-बोर्ड एग्जाम का समय है। ऐसे में प्रदूषण के चलते बच्चों की पढ़ाई में भी रुकावट आ रही है।

दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन से जुड़े डॉक्टर हंसराज सुमन कहते हैं,

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सरकार का स्कूल बंद करने का निर्णय सही नहीं है। ऑनलाइन पढ़ाई ठीक से नहीं हो पाती है। एग्जाम सिर पर हैं। आज मेरी बीए की क्लास में 70 में से सिर्फ 37 स्टूडेंट्स थे। सरकार को पहले से कुछ तैयारी करनी चाहिए थी।

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वहीं दिल्ली पेरेंट्स एसोसिएशन की अध्यक्ष अपराजिता गौतम कहती हैं कि घर के बाहर की हवा जितनी खराब है उसमें छोटे बच्चों को घर पर ही रखना सही है। भले ही एग्जाम से पहले के महीनों में पढ़ाई जरूरी होती है, लेकिन भयंकर प्रदूषण के बीच स्कूल नहीं चलाए जा सकते। सरकार का इन्हें बंद करने का निर्णय सही है।

हालांकि अपराजिता यह भी कहती हैं कि सरकार अपनी तैयारियों में पीछे है। वह कहती हैं,

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कोविड के दौरान सरकार ने जो तरीके अपनाए, अभी भी वही तरीके जारी हैं। साल के 10 महीने तक सरकार कोई तैयारी नहीं करती और नवंबर-दिसंबर के महीनों में स्कूल बंद करवा देती है। बच्चों की सेहत का मामला है, इसलिए यही एक रास्ता बचता है।

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8 प्रदूषकों की रीडिंग से निकलता है AQI

AQI खराब होना मतलब हवा खराब होना। हवा खराब होने के लिए उसमें शामिल 8 प्रदूषकों का स्तर देखा जाता है। ये 8 पॉल्यूटेंट्स हैं-

  • पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5)
  • पार्टिकुलेट मैटर (PM10)
  • ओजोन (O3)
  • कार्बन मोनोऑक्साइड
  • नाइट्रोजन डाइऑक्साइड
  • सल्फर डाइऑक्साइड
  • लेड
  • अमोनिया

फैक्ट्री के धुएं, धूल और ईंधन के जलने से बनते हैं पॉल्यूटेंट्स

ओजोन: जब पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल में होती है तो हमें सूरज की पराबैंगनी किरणों से बचाती है, लेकिन जब यही ओजोन जमीन के नजदीक की हवा में होती है, तो प्रदूषक की तरह काम करती है। ग्राउंड लेवल की ओजोन, गाड़ियों, इंडस्ट्रीज और पावर प्लांट वगैरह के धुएं और सूरज की रोशनी के रिएक्शन से बनती है।

पार्टिकुलेट मैटर: (PM) यानी सॉलिड और लिक्विड के इंसानी बाल से भी पतले कण। 10 माइक्रोमीटर तक के PM को PM10 कहा जाता है। यह सड़कों की धूल या ऐसे कामों से बनते हैं, जिनमें चीजों को तोड़ा जाता है। वहीं 2.5 माइक्रोमीटर वाले PM 2.5 कार, पावर प्लांट, लकड़ी के जलने, जंगल की आग वगैरह से बनते हैं।

कार्बन मोनोऑक्साइड: ये एक रंगहीन और गंधहीन गैस है। गाड़ियों, पावर प्लांट और इंडस्ट्रीज में ईंधन के जलने से बनती है। सर्दियों के मौसम में कम तापमान के चलते ईंधन जब ठीक से नहीं जल पाता तो यह प्रदूषणकारी गैस बनती है।

सल्फर डाइऑक्साइड: यह कोयले और आयल फ्यूल्स के जलने से पैदा होती है। यह नाक के रास्ते आसानी से अंदर नहीं जा पाती, लेकिन ऐसा कोई ज्यादा मेहनत का काम करते समय मुंह से सांस लेने के दौरान यह अंदर चली जाती है।

प्रदूषण से फेफड़े, दिल और किडनी की बीमारी, बच्चों में जेनेटिक डिसऑर्डर

बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. रवि खन्ना कहते हैं,

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लगातार प्रदूषित शहरों में रहने से औसत उम्र 5 साल तक कम हो जाती है। हवा में मौजूद प्रदूषक सांस के रास्ते शरीर में दाखिल होने के बाद शरीर की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं। कोशिकाएं जल्दी नष्ट होने लगती हैं। इससे गंभीर बीमारियों का खतरा पैदा होता है।

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रवि खन्ना बताते हैं कि गर्भ में पल रहे बच्चे को भी मां की गर्भनाल से पोषण मिलता है। प्रदूषित शहरों में रह रही महिलाओं में गर्भपात का खतरा होता है, पैदा होने वाले बच्चे में भी जेनेटिक डिसऑर्डर की आशंका बढ़ जाती है।

सभी प्रदूषक अलग-अलग तरह से शरीर पर असर डालते हैं

ओजोन- खांसी, छाती में दर्द की वजह बनती है। इससे फेफड़ों की काम करने की क्षमता कम हो जाती है। अस्थमा के मरीजों का अस्थमा और गंभीर हो जाता है। पार्टिकुलेट मैटर फेफड़ों को बुरी तरह प्रभावित करते ही हैं, हार्ट अटैक की भी वजह बन सकते हैं। वहीं कार्बन मोनोऑक्साइड के जहरीलेपन से सांस से जुड़ी बीमारियों के अलावा बच्चों, बुजुर्गों को सबसे ज्यादा समस्या होती है। इसके ज्यादा लेवल से मौत भी सकती है।

सल्फर मोनोऑक्साइड, अमोनिया और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जहरीली गैसें हैं। इनसे फेफड़ों के अलावा दिल की बीमारी भी हो सकती है। वहीं शरीर के अंदर लेड जाने से इसे पेशाब के रास्ते से बाहर निकलता होता है। इस प्रक्रिया में किडनी डैमेज हो सकती है।

डॉ. रवि खन्ना कहते हैं कि स्मॉग यानी धुंध में बाहर टहलते या जॉगिंग करने से बचना चाहिए। लोग सोचते हैं कि प्रदूषण है, ऐसे में खुले में एक्सरसाइज करना बेहतर रहेगा। यह सबसे खतरनाक है।

वह समझाते हुए कहते हैं कि आम तौर पर हमारे फेफड़ों में 3 लीटर तक हवा आ सकती है। हम सामान्य काम करने के दौरान 500 मिलीलीटर हवा सांस के जरिए लेते और छोड़ते हैं।

वहीं एक्सरसाइज करते समय हमारा एयर इंटेक 1000 मिलीलीटर तक बढ़ जाता है। ऐसे में हम कम समय में ज्यादा प्रदूषण अंदर ले रहे होते हैं। ये और भी ज्यादा खतरनाक है, इसलिए जब भी AQI बढ़े, हमें जितना हो सके, घर के अंदर रहना चाहिए।

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