भारतीय रेल
– फोटो : एएनआई (फाइल)
विस्तार
ट्रेन दुर्घटना को रोकने के लिए रेलवे ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोटक्शन सिस्टम ‘कवच’ से लैस किया जा रहा है। ट्रेन के इंजनों में इस सिस्टम को लैस करने के लिए गाजियाबाद विद्युत लोको शेड को जिम्मेदारी दी गई है। इस लोको शेड ने सर्वप्रथम 100 लोको कवच इंस्टॉलेशन का कार्य पूर्ण कर एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। इस लोको शेड में हर दिन एक इंजन को इस आधुनिक तकनीक से लैस कर कीर्तिमान स्थापित कर रहा है।
रेलवे बोर्ड के अपर सदस्य ट्रेक्शन ने 100वें कवच इंस्टाल करने के कार्य को शुरू कर करने के मौके पर कहा कि भारतीय रेलवे के आधुनिकीकरण और सुरक्षा मानकों को ऊंचा उठाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा। 100 लोकोमोटिव में इसे लगाकर विद्युत लोको शेड ने न केवल अपनी दक्षता प्रस्तुत किया है बल्कि यात्रियों की सुरक्षा को भी नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने का काम किया है। एक इंजन में एक दिन का समय इसे इंस्टॉल करने में लगता है। यह टीम की मेहनत और समर्पण का परिणाम है। इससे न केवल दुर्घटनाओं को कम किया जा सकेगा बल्कि यात्रा की सुरक्षा को भी सुनिश्चित किया जा सकेगा।
क्या है कवच
कवच सिस्टम को रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गनाइजेशन (आरडीएसओ) ने विकसित किया है। आपातकालीन स्थिति में पायलट सही समय पर ब्रेक नहीं लगा पाता है तो कवच सिस्टम स्वचालित तरीके से खुद ट्रेन को ब्रेक लगाकर रोकने में सक्षम है। कई बार ड्राइवर भूलवश व किसी तकनीकी खराबी के कारण रेड सिग्नल पार कर जाता है।
ऐसी स्थिति को खतरे में सिग्नल पास किया गया माना जाता है। इस परिस्थिति में यह सिस्टम सक्रिय होकर ट्रेन में ऑटोमैटिकक ब्रेक्स को रिलीज करेगा। जिससे ट्रेन की रफ्तार धीमी हो जाएगी। इससे आमने-सामने की टक्कर या पीछे से टक्कर नहीं होगी। बड़ा हादसा होने से बच जाएगा। वहीं, अगर कोई ट्रेन तय रफ्तार से तेज चल रही होगी तो ट्रेन खुदबखुद धीमी हो जाएगी। मौसम खराब होने की स्थिति में भी मददगार साबित होगा।
- रेलवे कवच 4.0 नया वर्जन लगेगा: रेल हादसों से बचने और कम समय में लंबी दूरी तय करने के लिए रेलवे ‘कवच 4.0’ प्रणाली को विकसित कर लिया है। दिल्ली-मुंबई, दिल्ली-कोलकाता के बीच 3,000 किमी पर इस उपकरण को लैस किया जाना है। सबसे पहले दिल्ली रेल मंडल ने इंजन पर कवच लगाने का काम शुरू किया था। साथ में ट्रैक और रेलवे स्टेशनों पर इसे लगाया जाएगा। नई दिल्ली व पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर इसे लगाने की प्रक्रिया चल रही है। तीनों जगहों पर इंस्टॉल होने के बाद कवच प्रणाली काम करना प्रारंभ कर देगी।
- इस तरह होगा खर्च: उपकरण लगाने पर करीब 50 लाख रुपये प्रति किलोमीटर का खर्च होगा। वहीं, एक इंजन पर इसे लगाने की कीमत करीब 70 लाख रुपये है। अभी तक रेलवे 1,216.77 करोड़ रुपये खर्च कर चुका है। 2024-25 के दौरान 1,112.57 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई है।
कवच से लैस करने के लिए कार्य योजना तैयार
कवच प्रणाली को वर्ष 2014-15 में दक्षिण मध्य रेलवे पर 250 किलोमीटर रेल मार्ग में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया था। 2015-16 में यात्री ट्रेनों पर पहला फील्ड परीक्षण किया गया। 2017-18 में कवच के विशिष्ट वर्जन 3.2 को अंतिम रूप प्रदान किया गया। मार्च 2022 तक कवच प्रणाली का विस्तार करते हुए 1200 किलोमीटर पर स्थापित किया किया। उपयोगिता को देखते हुए कवच वर्जन 4.0 के विकास के लिए कदम उठाया गया। यह प्रणाली 10 वर्ष की अवधि में विकसित की गई है। कोटा और सवाई माधोपुर के बीच सितंबर महीने में 108 किलोमीटर में कवच 4.0 लगाया गया। अहमदाबाद-वडोदरा खंड के 84 किलोमीटर में परीक्षण शुरू किया गया है।
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