पटना. 2025 फिर से नीतीश…कुछ महीने पहले जदयू के एक कार्यकर्ता पटना स्थित पार्टी कार्यालय के बाहर जब यह पोस्टर लगाया तो किसी को यह शक सुबहा नहीं था कि नीतीश कुमार एनडीए के मुख्यमंत्री उम्मीदवार नहीं होंगे. इस बात की तस्वीक बार-बार होती भी रही, लेकिन बीच में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर और बीजेपी के कुछ नेताओं की महत्वाकांक्षाओं को लेकर सवाल भी उठाते रहे कि क्या जेडीयू और बीजेपी के रिश्तों में कुछ तल्खी आ गई है? हाल में जब गिरिराज सिंह ने हिंदू स्वाभिमान यात्रा शुरू की तो जेडीयू और बीजेपी नेताओं के बीच थोड़ी तल्ख बयानबाजियां भी हुईं. हालांकि, यह भी साफ दिखा कि दोनों ओर से अधिक आक्रामक नहीं हुआ गया. अब जब बीते सोमवार को मुख्यमंत्री आवास पर एनडीए की बैठक हुई तो उसमें यह साफ-साफ घोषणा कर दी गई की 2025 में विधानसभा का चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा. इसी बैठक में स्वयं गिरिराज सिंह भी मौजूद रहे और उन्होंने भी इस मांग का इस प्रस्ताव का समर्थन किया. जाहिर तौर पर एक बार यह साबित हो गई कि बिहार में नीतीश कुमार ही ऑल इन ऑल रहेंगे.
नीतीश कुमार के साथ खड़ा रहा बिहार- नीतीश कुमार के नाम पर जो सहमति हुई है और इसको लेकर जो बताया गया है, यह साफ है कि भाजपा के पास अभी कोई मौका नहीं है जो वह नीतीश कुमार के बिना बिहार में आगे की राजनीति के बारे में सोचे. इसके पीछे कई वजहें हैं जिनमें एक केंद्र की गठबंधन वाली सरकार भी है, लेकिन बात बिहार की है. बिहार में आखिर नीतीश ही बॉस होंगे ऐसा क्यों है? दरअसल, बीजेपी की मजबूरी समझेंगे तो आपको बीते लोकसभा चुनाव परिणाम में जाना होगा. बीते लोकसभा चुनाव में जिस तरह से विपक्ष ने नरेटिव बनाया और संविधान खतरे में भी की, और इस बात को बढ़-चढ़कर समाज के अंदर ले गई इसका असर उत्तर प्रदेश में जबरदस्त तरीके से दिखा. लेकिन, दूसरी ओर बड़ा तथ्य यह भी है कि समाजवाद की पृष्ठभूमि वाली बिहार की राजनीति पर इसका बहुत असर नहीं पड़ा. जाहिर तौर पर इसकी सबसे बड़ी वजह नीतीश कुमार का चेहरा ही था.
नीतीश क्यों हैं मजबूरी इस समीकरण से समझिये
नीतीश कुमार के बीजेपी के साथ होने भर से बिहार में इंडिया अलायंस का दांव उल्टा पड़ गया और यहां 40 में 30 सीटें एनडीए गठबंधन के पक्ष में गईं. इसको और बेहतर तरीके से समझें कि यहां 17 सीटों पर भाजपा लड़ी थी, जिस पर वह 12 पर विजयी हुई. 16 सीटों पर जदयू लड़ा था तो वह भी 12 सीटों पर विजयी हुआ. इसके साथ ही लोक जनशक्ति पार्टी 5 सीटों पर लड़ी थी जिसमें उसे 100 प्रतिशत सफलता मिली. एक सीट जीतन राम मांझी ने जीती तो उपेंद्र कुशवाहा अपनी सीट हार गए. जाहिर तौर पर नीतीश कुमार का चेहरा बिहार में काम कर गया और जो बीजेपी के खिलाफ जो नरेटिव बनाया गया था वह बिहार में काम नहीं किया. साफ है कि इस बात को भली-भांति भाजपा समझती है और नीतीश कुमार को ही बॉस मानती है.
केंद्र की गठबंधन वाली सरकार में नीतीश कुमार अहम
दूसरी बड़ी बात नीतीश कुमार को लेकर यह है कि केंद्र अभी गठबंधन वाली सरकार एनडीए की है, इसमें नीतीश कुमार की बड़ी भूमिका है. अगर नीतीश कुमार पूरे तौर पर बीजेपी के साथ इंटैक्ट रहे और पीएम मोदी के साथ खड़े रहे तो जो ऑल ओवर नरेटिव बनाने की इंडिया अलायंस की रणनीति में वह धार नहीं रह जाएगी जो विपक्षी इंडिया गठबंधन के नेता खोजते हैं. निश्चित तौर पर नीतीश कुमार बीजेपी के लिए जरूरी हैं और मजबूरी भी. नीतीश कुमार कितने जरूरी हैं इस बात का अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा बिहार में छठ नीतीश कुमार के साथ मनाएंगे. मतलब नीतीश कुमार के इतनाकहते रहने पर भी कि इस बार वह पाल बदली नहीं करेंगे और बीजेपी के साथ ही रहेंगे, भाजपा किसी भी प्रकार से कई किसी भी स्तर पर पिछली बार की तरह चूक नहीं करना चाहती है.
नीतीश कुमार अपनी नीति से कोई समझौता नहीं करेंगे
एनडीए की बैठक से जो एक और बड़ा संदेश निकला वह यह कि नीतीश कुमार नेतृत्व की जगह पर तो रहेंगे ही, वहीं वह अपने एजेंडों को लेकर भी चलेंगे. जिस तरह से गिरिराज सिंह की हिंदू स्वाभिमान यात्रा से बीजेपी ने किनारा किया, कहा जाता है कि यह नीतीश कुमार के दबाव में ही हुआ. हालांकि, गिरिराज सिंह अपनी यात्रा पूरी करने में सफल रहे और जमीन पर उनको भाजपा कार्यकर्ताओं का समर्थन भी मिला, लेकिन बीजेपी को यह तो बताना ही पड़ा कि पार्टी गिरिराज सिंह की यात्रा को समर्थन में नहीं है. निश्चित तौर पर यहां भी नीतीश कुमार की ही चली.
चिराग पासवान भी नीतीश के आगे नतमस्क
अब आइये चिराग पासवान पर… चिराग पासवान अपनी छवि नीतीश कुमार के विरोधी नेता के तौर पर बनाते रहे हैं. एनडीए में शामिल चिराग पासवान लगातार नीतीश कुमार के समर्थन में ही बोले जा रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा है कि उनके मुद्दों पर विरोध जरूर था, लेकिन नीतीश कुमार से कभी विरोध नहीं रहा. चिराग पासवान ने भी मान लिया है कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का लड़ा जाएगा. चिराग पासवान का यह यू टर्न आगामी राजनीति के लिहाज से अहम है. दरअसल, चिराग को पता है कि अभी वह बिहार में आगे की राजनीति के लिए तैयार नहीं हो पाएंगे जब तक नीतीश कुमार रहे हैं. नीतीश कुमार की विरासत को बढ़ाने वाला चेहरा भी कोई नहीं दिख रहा है. ऐसे में वह अपने लिए नीतीश कुमार के स्पेस से जोड़कर भी देखते हैं.
गिरिराज सिंह का गुब्बारा तो जल्दी ही फूट गया!
खास बात यह इधर बिहार एनडीए में टकराव के कयास जोर पकड़ रहे थे और गिरिराज सिंह की हिंदू स्वाभिमान यात्रा के बाद इसको और बल मिला था. बीजेपी और जेडीयू के रिश्तों में तल्खी की भी चर्चा होने लगी थी. दरअसल, राजनीति के जानकार बताते हैं कि बिहार की जात-पात वाली राजनीति में नीतीश कुमार बहुत बड़ा चेहरा हैं, वहीं गिरिराज सिंह तो न तो आबादी और न जनाधार के आधार पर कहीं ठहरते हैं. बीजेपी में भी उनके नाम पर कोई सर्वसम्मति नहीं है. वहीं, नीतीश बिहार एनडीए के अगुआ थे, हैं और आगे भी रहेंगे यह बात इससे भी साबित हो गई कि गिरिराज सिंह की नीतीश की मीटिंग में मौजूदगी और उनके दूसरी पंक्ति में बैठने भर से भी यह साफ हो गया कि 2025… फिर से नीतीश!
Tags: Nitish kumar
FIRST PUBLISHED : October 30, 2024, 19:34 IST
- व्हाट्स एप के माध्यम से हमारी खबरें प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
- टेलीग्राम के माध्यम से हमारी खबरें प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
- हमें फ़ेसबुक पर फॉलो करें।
- हमें ट्विटर पर फॉलो करें।
Follow Us on Social Media
Disclaimer: This story is auto-aggregated by a computer program and has not been created or edited by Ghaziabad365 || मूल प्रकाशक ||