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नवरात्रि माने नौ रातें. यहां ‘नव’ के दो अर्थ हैं, ‘नया’ और ‘नौ’! रात्रि वह है जो आपको विश्रांति देती है. हमारे जीवन में तीन तरह के ताप होते हैं- आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक. जो कष्ट प्रकृति से मिलता है जैसे गर्मी, सर्दी, अतिवृष्टि, अनावृष्टि या फिर भूचाल आ जाना; उसको आधिदैविक ताप कहते हैं. परिवार से, पति-पत्नी, बच्चों, अपने मन, व्यवहार से या फिर दरिद्रता आदि से होने वाली परेशानियां आधिभौतिक ताप हैं. सब कुछ होते हुए भी मन में कष्ट, बेचैनी और अप्रसन्नता होना- ये आध्यात्मिक ताप हैं. इन्हें तापत्रय कहा जाता है. जो इन तीनों तरह के ताप से आपको शांति देती है, वह ‘रात्रि’ है. वह सभी पशु-पक्षियों को भूख-प्यास, दुःख-दर्द से हटा कर अपनी गोद में सुला देती है.

हर शिशु नौ महीने अपनी माता के गर्भ में विश्राम करता है. विश्राम से उसमें नयी चेतना पैदा होती है. हर वर्ष ‘नौ’ दिन अपने स्रोत में, दिव्य चेतन शक्ति में डूब जाने को ही नवरात्रि कहते हैं. उसी चेतन शक्ति को देवी मां कहा गया है. मां हमें भीतर से सुख देती है, वह हमारा कल्याण करती है.

नवरात्रि के पहले तीन दिन तमोगुण से संबंधित होते हैं, जो अंधकार और भारीपन का प्रतीक है. अगले तीन दिन रजोगुण से जुड़े होते हैं, जो सक्रियता और बेचैनी का प्रतीक है. आखिरी तीन दिन सत्त्व गुण का उत्सव मनाया जाता है, जो शुद्धता और शांति से संबंधित है. नवरात्रि के नौ दिनों में हम देवी भगवती के तीन रूपों की पूजा से तीनों गुणों के पार हो जाते हैं. पहले तीन दिन देवी दुर्गा का आह्वान किया जाता है, जिनकी प्रार्थना से मन की अशुद्धियां दूर हो जाती हैं और हम राग-द्वेष, अहंकार और लालच जैसी बुरी प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त कर लेते हैं. एक बार जब हम इन नकारात्मक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण कर लेते हैं, तब अपने सकारात्मक गुणों को पोषित करने के लिए अगले तीन दिन देवी लक्ष्मी से प्रार्थना करते हैं. अंतिम तीन दिनों में जब हमारे भीतर सत्त्व गुण की वृद्धि हो जाती है तब आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए देवी सरस्वती की आराधना करते हैं.

असुर रक्तबीजासुर की कहानी

पुराणों में एक कहानी प्रचलित है कि रक्तबीजासुर नाम का असुर था और उसे यह वरदान प्राप्त था कि जब भी उसके रक्त की एक बूंद भी धरती पर गिरेगी तो उस एक बूंद से सौ अन्य रक्तबीजासुर पैदा हो जाएंगे. इस कारण वह बहुत उत्पाती हो गया था. यह दर्शाता है कि हमारे डीएनए में हमारे सभी गुण उपस्थित हैं, हमारा पूरा इतिहास उपस्थित है. इसलिए यदि किसी परिवर्तन की आवश्यकता है तो वह ‘बीज’ में होना चाहिए और यह परिवर्तन देवी मां ही कर सकती हैं. वे ज्ञान, प्रेम और क्रिया के अपने त्रिशूल से रक्तबीजासुर जैसे असुरों का जड़ से विनाश करती हैं.

जब ज्ञान की कमी होती है, तब आप इच्छाओं में फंस जाते हैं. कभी-कभी आपके पास ज्ञान तो होता है लेकिन आप उस पर कार्य नहीं करते और फिर आपको कष्ट होता है. यह ज्ञान होते हुए भी कि आपके लिए क्या अच्छा है, आप उसे टालते रहते हैं. कार्य करने की इच्छा है, और आप जानते हैं कि वह आपके लिए अच्छा है फिर भी आप उसे नहीं करते, यह क्रिया शक्ति की कमी है. इसलिए जो भी नकारात्मक गुण हमारे भीतर गहराई में उपस्थित हैं ज्ञान शक्ति, प्रेम शक्ति और क्रिया शक्ति से उनका विनाश किया जा सकता है.

प्राणशक्ति का संचार

जब आप साधना में लीन होते हैं और अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा को जागृत करते हैं, तब आपके पूरे शरीर और मन में प्राणशक्ति का संचार होता है और नकारात्मक गुण समाप्त हो जाते हैं. यह परिवर्तन केवल मन के स्तर पर नहीं बल्कि अस्तित्व के स्तर पर होता है. आध्यात्मिक साधना और ध्यान की शक्ति आपके डीएनए के स्तर पर बदलाव लाती है. ध्यान एक ही समय में गहरे विश्राम में होने और सजग रहने का मार्ग है. यह मन को शांत करने और भीतरी आनंद प्राप्त करने का कौशल है.

इन दिनों में हम सभी रूपों में देवी मां की आराधना करते हैं. हम अन्नमय कोश, प्राणमय कोश और उससे परे आनंदमयकोश तक देवी मां की ऊर्जा का अनुभव करते हैं जो इस सम्पूर्ण अस्तित्व का सार हैं.

नवरात्रि में भजन, कीर्तन और ध्यान करें और अपनी चेतना में डुबकी लगाएं

नवरात्रि से कई अन्य गूढ़ रहस्य जुड़े हुए हैं. हम सभी रहस्यों को तो नहीं जान सकते, इसलिए बैठ कर ध्यान करें. नवरात्रि अपनी चेतना में जागृत होने का एक सुंदर अवसर है! जब आप भक्ति की लहर में डूबते हैं, तब सारे अवगुण अपने आप दूर हो जाते हैं. इन समय हम यह प्रार्थना करते हैं कि सबका मंगल हो और सबको सुख-शांति मिले.

नवरात्रि के दिनों में लोग साथ मिलकर गरबा नृत्य करते हैं और उत्सव मनाते हैं. गरबा शब्द संस्कृत के ‘गर्भ’ शब्द से लिया गया है. जैसे एक शिशु 9 महीने माँ के गर्भ में होता है, वैसे ही हम ईश्वर के गर्भ में हैं. गरबा का यही सन्देश है कि हमें सबको स्वीकार करना चाहिए!

मान लीजिये कि हमें किसी व्यक्ति की दस बातें पसंद आईं, लेकिन उनमें से दो बातें हमें नहीं पसंद आईं तो हम उसे अस्वीकार कर देते हैं. हर एक आदमी की हर एक बात हमें जचे, ऐसा तो नहीं हो सकता इसलिए जितना जचता है, उतना भी ठीक है. जो व्यक्ति जैसा है, उसे वैसा ही स्वीकार करें. नवरात्रि रजोगुण, तमोगुण और सतोगुण सबको साथ लेकर चलने का पर्व है .

नवरात्रि के बाद दशमी के दिन विजयदशमी मनाई जाती है. विजयदशमी के दिन मन की सारी विकृतियां और नकारात्मक प्रवृत्तियां समाप्त हो जाती हैं. यह दिन साल भर हमारे मन के द्वारा एकत्र किए गए सभी राग द्वेष पर विजय पाने का प्रतीक है. इस दिन हम ज्ञान की अग्नि में भीतर की सारी नकारात्मकताओं को जला देते हैं. और ऐसा करने से हम भीतर से खिल जाते हैं.

ब्लॉगर के बारे में

गुरुदेव श्री श्री रविशंकर

गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर एक मानवतावादी और आध्यात्मिक गुरु हैं। उन्होंने आर्ट ऑफ लिविंग संस्था की स्थापना की है, जो 180 देशों में सेवारत है। यह संस्था अपनी अनूठी श्वास तकनीकों और माइंड मैनेजमेंट के साधनों के माध्यम से लोगों को सशक्त बनाने के लिए जानी जाती है।

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