कहा जाता है कि कई शताब्दी पूर्व इस क्षेत्र के राजा ने एक ब्राह्मण पुरोहित का अपमान किया था, जिसके बाद वह ब्राह्मण अत्यधिक दुखी होकर अपने प्राण त्याग देते हैं. तब से इस गांव में किसी भी ब्राह्मण के ठहरने को अपशकुन माना जाता है. मान्यताओं के अनुसार, अगर कोई ब्राह्मण यहां रहने की कोशिश करता है, तो उसके साथ अनिष्ट होना तय है.
ऊंचा दीप जलने से क्रोधित हो गईं महारानी
इस कथा का संबंध बड़हर राजघराने से भी है. स्थानीय जानकारों की माने तो कई शताब्दी पूर्व, बड़हर राजमहल के पास एक ऊंची पहाड़ी पर एक सन्यासी ब्राह्मण का आश्रम था, जहां नियमित रूप से भगवान की पूजा होती थी. एक दिन राजमहल से देखा गया कि महल की ऊंचाई से भी अधिक ऊंचाई पर एक दीप जल रहा है. जब महारानी को इस बारे में पता चला, तो उन्होंने आदेश दिया कि यह दीप महल से नीचा जले या बिल्कुल न जले. पुरोहित ने इस आदेश को मानने से इंकार कर दिया. इसके बाद महारानी ने आदेश दिया कि उस आश्रम को ध्वस्त कर दिया जाए.
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ब्राह्माण के रुकने पर होता है अपशकुन
महल के सैनिकों ने आश्रम को तोड़ने का प्रयास किया, जिससे क्रोधित होकर ब्राह्मण सन्यासी ने आश्रम छोड़कर खुले आसमान के नीचे आमरण अनशन शुरू कर दिया. कुछ ही दिनों में उनका देहांत हो गया. उनके निधन के बाद, उसी स्थान पर एक पिंड प्रकट हुआ, जिसे ब्रह्म बाबा के रूप में पूजा जाने लगा. तभी से इस स्थान पर उनकी पूजा की जाती है और दूर-दूर से लोग यहां पूजन के लिए आते हैं. विशेष अवसरों पर यहां मेलों का आयोजन भी होता है. ग्रामीणों ने लोकल 18 को बताया कि गांव में आज भी मान्यता है कि ब्राह्मणों के अपमान के कारण अब इस गांव में कोई ब्राह्मण नहीं रह सकता है. अगर रुकता है तो अपशकुन होता है.
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Tags: Local18, Sonbhadra News
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