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2 घंटे पहले

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“मैं पुणे की एक कंपनी में काम कर रहा था। एक दिन मैं ऑफिस में था तो घर से फोन आया कि वाइफ की तबियत अचानक बिगड़ गई है। मैं तुरंत मैनेजर के पास गया कि मुझे छुट्टी चाहिए। इसपर मैनेजर ने कहा, ‘तुम छुट्टी लेकर क्या करोगे, तुम क्या डॉक्टर हो?’ कुछ समय बाद मेरी पत्नी की मौत हो गई।”

“कॉलेज खत्म होने के बाद बैंगलोर के एक IT स्टार्टअप में अच्छी नौकरी लग गई। कुछ ही समय बाद घरवालों ने शादी भी तय कर दी। शादी की तैयारियां शुरू करना चाहती थी लेकिन मैनेजर छुट्टी वाले दिन भी काम पकड़ा देता था। शादी के एक महीना पहले तक भी वो मुझे बोलता कि सक्सेसफुल होना है तो छुट्टी के दिन भी 2-3 घंटे काम के लिए निकाला करो। आखिरकार मुझे नौकरी छोड़नी पड़ी।”

“मैं बैंगलोर की एक सेल्स कंपनी में काम करता हूं। पिछले साल जब मैं टार्गेट्स पूरे नहीं कर पाया तो मैनेजर ने केजी में पढ़ने वाले बच्चे की तरह मुझे पेपर पर सौ बार ‘आई विल मीट माय टारगेट्स’ (मैं अपने टारगेट्स पूरे करूंगा) लिखने की सजा दी और मुझे ऐसा करना भी पड़ा।”

सोशल मीडिया पर इन दिनों ऐसे मैसेजेज की बाढ़ है, जिसमें लोग अपने दफ्तरों के एक्‍सट्रीम वर्क कल्‍चर के एग्‍जाम्‍पल शेयर कर रहे हैं। इसने पूरे देश में वर्क-लाइफ बैलेंस को लेकर एक बहस छेड़ दी है। इसी बहस में एक सवाल उठा है, कि क्‍या देश ‘कोरोशी’ की गिरफ्त में है।

कोरोशी- यानी काम करते करते मौत। ये एक जापानी शब्द है, जो तब चलन में आया जब जापान में काम करते करते लोगों का मरना आम बात हो गया था।

सिर्फ प्राइवेट ही नहीं, सरकारी दफ्तरों में भी टॉक्सिक वर्क कल्‍चर के कई मामले सामने आने लगे हैं। सितंबर के शुरुआती हफ्तों में SEBI के करीब 200 कर्मचारियों ने मुंबई ऑफिस के बाहर प्रदर्शन किया। उनकी शिकायत थी कि सीनियर्स उन्हें तरह-तरह के नामों से बुलाते है, सरेआम बेइज्जत करते हैं और लगातार बदलते टारगेट्स को पूरा करने का प्रेशर बढ़ा रहे हैं।

नोएडा के एक प्राइवेट बैंक में काम करने वाले एक कर्मचारी ने जुलाई में सुसाइट कर लिया। उसने पांच पन्नों के सुसाइड नोट में लिखा कि किस तरह ऑफिस में उसे हर दिन परेशान किया जाता है और तरह-तरह की बातें सुनाई जाती हैं।

26 साल की एना की वर्कलोड से मौत हो गई

पिछले दिनों Ernst & Young यानी EY कंपनी में काम करने वाली CA एना सेबेस्टियन पेरायिल की मौत हो गई थी। डॉक्‍टर्स का कहना था कि एना न ठीक से सो रही थी, न समय से खाना खा रही थी, जिसकी वजह से उसकी जान चली गई।

एना की मां अनीता ऑगस्टिन ने चेयरमैन राजीव मेमानी को लेटर लिखकर अपनी कंपनी के टॉक्सिक वर्क कल्‍चर में सुधार करने को कहा था।

इसके अलावा Delloitte में पहले काम कर चुके जयेश जैन ने एक्स पर कुछ स्क्रीशॉट्स शेयर किए। उन्होंने लिखा कि वहां काम करते हुए वो अपने कलीग्स से सुबह के 5-5 बजे तक हेल्थ और खराब वर्क कल्चर को लेकर बातें करते थे।

जयेश ने कहा, ‘मैं अच्‍छे से समझ सकता हूं एना पर क्‍या बीती होगी। हमने भी कंपनी में हर दिन 20-20 घंटे काम किया है। कॉर्पोरेट लाइफ मुश्किल है। शुक्र है मैं समय रहते वहां से निकल गया। एक और यूजर जिगर शाह ने लिखा, ‘मेरी बहन भी बिग 4 में से एक कंपनी में काम करती है। एक बार वो अपने ऑफ के दिन डेंटिस्‍ट के पास गई। इसी दौरान उसके मैनेजर ने उसे फोन किया और कहा कि काम करना पड़ेगा। मना करने पर मैनेजर नाराज हो गया।’

वर्क लाइफ बैलेंस इंडेक्स कुल 9 फैक्टर्स पर आधारित है

  • एनुअल लीव
  • मिनिमम सिक पे पर्सेंटेज
  • पेड मैटर्निटी लीव और पेमेंट रेट
  • मिनिमम वेज
  • हेल्थकेयर सिस्टम
  • हैप्पिनेस इंडेक्स
  • एक कर्मचारी हर हफ्ते मिनिमम कितने घंटे काम कर रहा है
  • LGBTQ+ इन्क्लूसिविटी
  • ग्लोबल पीस इंडेक्स

ये इंडेक्स रिमोट द्वारा जारी किया जाता है। रिमोट एक फर्म है जो दुनियाभर के लोगों को दुनियाभर की कंपनियों से नौकरी के लिए कनेक्ट करती है।

लंबे वर्किंग आवर्स से घट सकती है प्रोडक्टिविटी

भारत में वर्कप्लेस पर सेक्शुअल हैरेसमेंट को लेकर तो कानून बन चुके हैं। मगर टॉक्सिक वर्कप्लेस को लेकर अभी तक कोई एक्शन नहीं लिया गया है। कॉर्पोरेट्स में काम करने वाले लोग वर्किंग ऑवर्स से इतर काम करना अब नॉर्मल मान चुके हैं। जबकि कई स्टडीज में ये पाया गया है कि लंबे वर्किंग ऑवर्स से प्रोडक्टिविटी पर नकारात्मक असर पड़ता है। इसके साथ ही कर्मचारियों को वर्कप्लेस पर अच्छा महसूस कराया जाए तो इससे वो बेहतर परफॉर्म कर पाते हैं।

इंडिया के बेस्ट वर्कप्लेसेज इन हेल्थ एंड वेलनेस 2023 रिपोर्ट के मुताबिक, अगर एम्प्लॉइज मानसिक तौर पर अच्छा महसूस करते हैं तो…

  • उनके उसी ऑर्गेनाइजेशन में काम करने के चांसेज 3 गुना बढ़ जाते हैं।
  • वो दिए काम को पूरा करने में 2 गुना ज्यादा मेहनत लगाते हैं।
  • ऑर्गेनाइजेशन की बेहतरी के लिए किए गए बदलावों को अपनाने में 3 गुना ज्यादा एफर्ट लगाते हैं।

जापान, ऑस्ट्रेलिया में ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ लॉ

कंपनियों की मनमानी से कर्मचारियों की खराब होती फिजिकल और मेंटल हेल्थ को देखते हुए कई देशों ने पिछले कुछ सालों में कानून बनाए हैं। जापान में इसके लिए वर्क स्टाइल रिफोर्म बिल लाया गया है।

जापान- जापान में साल 2018 में वर्क स्टाइल रिफोर्म बिल पास किया गया था। इसके मुताबिक कर्मचारी हफ्ते में 40 घंटे से ज्यादा काम नहीं करेंगे। इस बिल में ओवरटाइम की लिमिट भी सेट की गई है। बहुत जरूरी होने पर कंपनियां अपने यहां काम कर रहे कर्मचारियों से हफ्ते में 45 घंटे से 80 घंटे तक काम करवा सकती हैं जो ओवरटाइम माना जाएगा। इसके अलावा अब कंपनियों को ये देखना होगा कि कर्मचारी सालभर में कम से कम पांच पेड लीव जरूर लें।

ऑस्ट्रेलिया – जुलाई-अगस्त के महीने में ऑस्ट्रेलियाई सरकार ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ लॉ लेकर आई। ये नया कानून उन कर्मचारियों के लिए खुशखबरी है जो वर्किंग आवर्स के बाद ऑफिस से आने वाले कॉल्स और मैसेजेस से परेशान रहते हैं।

इस कानून के लागू होने से कर्मचारी ऑफिस के बाद काम से रिलेटेड सभी कॉल्स और मैसेजेस को इग्नोर कर सकते हैं। इसके लिए एक फेयर वर्क कमीशन भी बनाई गई है, जो मैनेजर्स पर 19 हजार ऑस्ट्रेलियाई डॉलर तक और कंपनियों पर 94 हजार ऑस्ट्रेलियाई डॉलर तक का फाइन लगा सकती है।

बेल्जियम – ये यूरोपियन यूनियन का पहला देश जहां कर्मचारियों को हफ्ते में सिर्फ 4 दिन काम करने की छूट दी गई। हालांकि, ये भी कहा गया कि वर्किंग आवर्स पहले की ही तरह 40 घंटे रहेंगे। यानी कर्मचारियों के पास ये छूट है कि चाहे तो हफ्ते के 4 दिन में 40 घंटे काम करके बाकी दिन छुट्टी ले सकते हैं।

फ्रांस- ये वो पहला देश है जहां साल 2017 में ‘राइट टू डिस्कनेक्ट’ पहली बार लागू किया गया। ये कानून कहता है कि कंपनियों को काम के बाद कर्मचारियों से होने वाली बातचीत के लिए गाइडलाइन बनानी होगी। साथ ही अगर कोई कर्मचारी वर्किंग ऑवर्स से ज्यादा काम करे तो उसे ओवरटाइम पे मिलना चाहिए। यहां हफ्ते में 35 घंटे से ज्यादा काम करने वाले कर्मचारियों को शुरू के 8 घंटे के लिए 25% ओवरटाइम पे और 8 घंटे से ज्यादा काम करने पर 50% ओवरटाइम पे दिया जाता है।

आयरलैंड- कर्मचारी की बेहतरी सुनिश्चित करने के लिए आयरलैंड ने अप्रैल 2021 में राइट टू डिस्कनेक्ट पर कोड ऑफ प्रैक्टिस लगाया। इस देश में कर्मचारियों को बिना कारण बताए और नोटिस दिए काम से बर्खास्त नहीं किया जा सकता।

यहां एम्प्लॉयमेंट इक्वालिटी एक्ट 1998 टू 2011 कर्मचारियों को वर्कप्लेस पर होने वाले किसी भी तरह के भेदभाव से बचाता है।

वर्तमान हालात को देखकर लगता है कि भारत कोरोशी की गिरफ्त में है जिसे मिलेनियल्स ने पॉपुलर किया है। राइज एंड ग्राइंड यानी उठो और मेहनत करो, थैंक गॉड इट्स मनडे यानी शुक्र है सोमवार है (TGIM) और हसल कल्चर को मंत्रा बना लिया है।

इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन की 2023 की सबसे ज्यादा काम करने वाले देशों की लिस्ट में भारत 7वें नंबर पर है। लिस्ट में बताया गया कि भारत में एक आम कर्मचारी हर हफ्ते औसतन 47.7 घंटे काम करता है। इस लिस्ट में चीन, जापान, बांग्लादेश और पाकिस्तान भारत से निचले पायदान पर हैं यानी इन देशों में कर्मचारियों के काम करने के घंटे भारत से काफी कम हैं।

जुलाई में हुई एना की मौत ने गर्दन झुकाकर काम कर रहे युवाओं की नींद तोड़ी है। सेंट्रल लेबर मिनिस्‍ट्री ने भी मामले की जांच करने का ऐलान किया है। हालांकि, जहां एक ओर नारायण मूर्ति और एलॉन मस्‍क जैसे उद्योगपति युवाओं से हफ्ते के 80 घंटे काम करने की अपील कर रहे हैं, ऐसे में भारत में वर्क लाइफ बैलेंस को लेकर कानून कब आ पाएगा, ये कहना मुश्किल है।

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