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कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में जुटे छत्तीसगढ़ के नक्सल पीड़ित
– फोटो : अमर उजाला

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गुनगुनी धूप में राधा करीब 11 साल पहले अपने घर के पास ही चचेरे भाई रामू के साथ खेल रही थी। खेलते-खेलते उन्हें केतली जैसी कोई चमकदार चीज दिखाई पड़ी। जैसे ही दोनों ने उत्साह से उसे उठाया, वैसे ही तेज धमाका होता है। वह दोनों आईईडी की चपेट में आ गए। इस नक्सली हमले ने उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदल डाली। दोनों भाई-बहन जिंदगी भर के लिए शारीरिक रूप से अक्षम हो गए हैं।

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छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले की रहने वाली कुमारी राधा सलाम की इस घटना में एक आंख की रोशनी चली गई। नक्सली हमले के दंश का दर्द उनके चेहरे पर अब भी साफ झलक रहा है। चेहरे पर बारूद के निशान हैं। यह कहानी सिर्फ राधा की नहीं है। उनकी तरह नक्सलवाद का दंश कई आदिवासी गांव झेल रहे हैं। किसी ने अपने परिवार के सदस्यों को खो दिया, तो कुछ ने अपने पैर, हाथ गंवा दिए हैं। यहां तक कि कई लोगों की आंखों की रोशनी भी चली गई।

बस्तर शांति समिति की ओर से आयोजित सुनो नक्सली-हमारी बात कार्यक्रम का कॉन्सीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में आयोजन किया गया। इसमें नक्सलवाद से प्रभावित आदिवासियों ने अपनी पीड़ा सुनाई। आयोजकों का कहना है कि केंद्र सरकार से मिलकर अपने लिए शांत बस्तर की मांग करेंगे।

सवाल करने पर नम आंखों से राधा कहती हैं कि नक्सली स्कूल-अस्पताल को भी अपना निशाना बना रहे हैं। उनका क्या कसूर है। हमारी समस्याओं को सुना जाना चाहिए। वह बताती हैं जब यह घटना घटी, तब उनकी उम्र तीन वर्ष थी लेकिन, हालात अब और भी भयानक रूप ले चुके हैं। नक्सलियों ने उनका पूरा जीवन बर्बाद कर दिया है। जो सपने संजोए हैं, वह शायद खुली आंखों से देख सकें। वह कहती हैं कि बस्तर से नक्सलवाद खत्म होना चाहिए।

बीजापुर जिले के रहने वाले गुड्डुराम लेकाम इसी वर्ष 28 मार्च को नक्सली हमले का शिकार हुए। वह रोते हुए कहते हैं कि रोज की तरह वह भी उस दिन काम के लिए निकले थे लेकिन नक्सली हमले की चपेट में आ गए। इस घटना में उनका दायां पैर क्षतिग्रस्त हो गया। आलम यह था कि इलाज कराने के लिए जब अस्पताल गए तो वहां भी माओवादियों ने इलाज नहीं कराने दिया। ऐसे में उनका पैर काटना पड़ा। 

भाई को आंखों के सामने गोलियों से भून डाला

बस्तर में साप्ताहिक हाट सबसे रौनक भरी जगह होती है। 12 मार्च, 2014 को कोंडागांव के मटवाल गांव के साप्ताहिक बाजार में एक जगह पर व्यापारी रूपेंद्र कश्यप अपने भाई केदार कश्यप के साथ बैठकर बात कर रहे थे। इतनी देर में ही अचानक तीन हथियारबंद माओवादी आए और उन्होंने दोनों भाइयों के नाम पर्चा जारी किया। वह कुछ समझ पाते, माओवादियों ने उन पर गोलियां चला दीं। दोनों भाई जान बचाने के लिए भागे, लेकिन रूपेंद्र उनके हाथ आ गए। उन्होंने रूपेंद्र को गोलियों से भून डाला। केदार ने छिपकर अपनी जान बचाई लेकिन अपने सामने भाई की हत्या वह असहाय होकर देखते रहे। उनके जांघ में लगी गोली ने उन्हें दिव्यांग बना दिया। केदार रोते हुए कहते हैं कि माओवादियों ने उनके व्यापार पर रोक लगा दी। 

माओवादियों ने विकास के रास्ते में ‘बम’ प्लांट कर रखा है

उत्तर बस्तर कांकेर जिले के किसान सियाराम रामटेके अपनी धान की फसल को देखने के लिए खेत में गए थे। वहां कुछ देर बिताकर पास में ही नदी किनारे दातुन करने लगे। वे घाट में उतर ही रहे थे कि एक गोली उनके शरीर से आर-पार होती है। उन्होंने गोली की दिशा में देखा, वैसे ही एक और गोली कमर में आ धंसी। इतने में वह गिर गए। 4-5 गोलियां लगने के बाद रामटेके बेसुध हो गए। यह बताते हुए रामटेके की सांस बढ़ने लगी। वह कहते हैं कि नक्सलियों ने उनके सिर पर कई बार पत्थर से मारा। नक्सलियों को लगा कि वह मर गए हैं पर ग्रामीणों ने उन्हें देखा और उन्हें अस्पताल लेकर गए लेकिन वे अब चलने में असमर्थ हैं। वह कहते हैं कि बस्तर में विकास तो हो सकता है, लेकिन उस विकास के रास्ते में माओवादियों ने ‘’बम’’ प्लांट कर रखा है। उन्होंने बताया कि जैसे ही बस्तर का कोई नागरिक विकास के रास्ते पर थोड़ा आजाद होकर चलता है, वैसे ही माओवादियों के लगाए बम उसे दोबारा उसी आतंक के साये में ले जाते हैं, जहां से निकलना नामुमकिन हो जाता है।

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