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भाजपाइयों की अंदरूनी राजनीति और नगर निगम पर कब्जे को लेकर स्थानीय दिग्गजों में चल रहे कोल्ड वॉर के बीच मेयर सुनीता दयाल एक बार फिर निगम अधिकारियों के प्रति हमलावर हो गई हैं। मेयर के लगातार बदलते मिजाज से निगम अधिकारी भी सकते में हैं। नगर निगम में कार्यरत अधिकारी इतने परेशान हो गये हैं कि अब वह ट्रांसफर की जुगत लगा रहे हैं। कई अधिकारी इस बात के लिए सिफारिसी तलाश रहे हैं कि कोई उनका तबादला गाजियाबाद नगर निगम से कहीं और करवा दे।अधिकारियों और कर्मचारियों की कमी से जूझ रहे नगर निगम के लिए यह अच्छी बात नहीं है। सुनीता दयाल का लंबा राजनैतिक कैरियर रहा है, लेकिन प्रशासनिक अनुभव हीनता और अपरिपक्वता के कारण उनके कार्यकाल में नगर निगम जंग का मैदान बन गया है। जिस मेयर पर नगर निगम की छवि बनाने की जिम्मेदारी है वहीं, नगर निगम को घेरने में लगी हैं। 

गाजियाबाद। नगर निगम में चल रही राजनैतिक रस्साकशी थमने का नाम नहीं ले रहा है। भाजपाइयों की अंदरूनी राजनीति और नगर निगम पर कब्जे को लेकर स्थानीय दिग्गजों में चल रहे कोल्ड वॉर के बीच मेयर सुनीता दयाल एक बार फिर निगम अधिकारियों के प्रति हमलावर हो गई हैं। मेयर के लगातार बदलते मिजाज से निगम अधिकारी भी सकते में हैं। नगर निगम में कार्यरत अधिकारी इतने परेशान हो गये हैं कि अब वह ट्रांसफर की जुगत लगा रहे हैं। कई अधिकारी इस बात के लिए सिफारिसी तलाश रहे हैं कि कोई उनका तबादला गाजियाबाद नगर निगम से कहीं और करवा दे।अधिकारियों और कर्मचारियों की कमी से जूझ रहे नगर निगम के लिए यह अच्छी बात नहीं है। सुनीता दयाल का लंबा राजनैतिक कैरियर रहा है, लेकिन प्रशासनिक अनुभव हीनता और अपरिपक्वता के कारण उनके कार्यकाल में नगर निगम जंग का मैदान बन गया है। जिस मेयर पर नगर निगम की छवि बनाने की जिम्मेदारी है वहीं, नगर निगम को घेरने में लगी हैं। मेयर कभी भाजपाईयों से उलझ जाती हैं तो कभी निगम अधिकारियों के खिलाफ ही बयानबाजी करती हैं। बीते महीने पांच दर्जन से अधिक पार्षद मेयर के खिलाफ लामबंद होते हुए अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहे थे। लेकिन निगम की बोर्ड बैठक नहीं होने के कारण मामला टल गया था। निगम कार्यकारिणी में रिक्त पड़े आधा दर्जन सदस्यों का चुनाव अभी तक नहीं हो पाया है। ऐसे में नगर निगम में एक बार फिर से राजनैतिक द्वंद और अधिकारियों पर प्रहार देखने को मिल सकता है।

राजनैतिक विरोधियों के साथ-साथ मेयर ने नगर आयुक्त विक्रमादित्य सिंह मलिक के खिलाफ जोरदार तरीके से मोर्चा खोल रखा है। पूर्व नगर आयुक्त नितिन गौड़ के साथ भी मेयर का काफी विवाद हुआ था। नितिन गौड़ को गाजियाबाद से हटवाने के लिए भी मेयर ने लखनऊ के कई चक्कर लगाये थे। सिर्फ अधिकारी ही नहीं भााजपा के स्थानीय सांसद अतुल गर्ग, कैबिनेट मंत्री सुनील शर्मा और अन्य भााजपाई नेताओं से भी मेयर का पुराना विवाद है। मेयर सुनीता दयाल द्वारा टैक्स विभाग को लेकर लिखी गई हालिया चिट्ठी ने एक बार फिर से निगम की राजनीति गर्मा दी है। अब भाजपाई ही यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या सुनीता दयाल भाजपा की मेयर हैं ? या फिर वह विरोधी खेमे से हैं।

नगर निगम को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाना प्रदेश सरकार की प्राथमिकता में शामिल है। नगर निगम स्वाबलंबी बने और शहर में विकास कार्य तेजी से हो इसके लिए आमदनी बढ़ाना जरूरी है। नगर आयुक्त विक्रमादित्य सिंह मलिक ने दो वर्षों में नगर निगम की आमदनी को दोगुणा करने और निगम को पूरी तरह से स्वाबलंबी बनाने के विजन के साथ काम करना शुरू किया था। एक वर्ष से भी कम समय में उन्होंने आमदनी को डेढ़ गुणा कर दिया है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में टैक्स वसूली 200 करोड़ से कम था जो कि वित्तीय वर्ष 2023-24 में बढ़कर 300 करोड़ हो गया। नगर आयुक्त ने चालू वित्तीय वर्ष 2024-25 में टैक्स वसूली 400 करोड़ के पार पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया है और पिछले महीने तक 150 करोड़ की टैक्स वसूली हो चुकी है। शहर की सफाई व्यवस्था दुरूस्त करने से लेकर गाजियाबाद में प्रदूषण कम करने को लेकर नगर निगम द्वारा किये गये कामकाज की सराहना हो रही है। शहर में बदलाव दिखाई दे रहा है। नगर निगम की कार्यशैली और छवि को लेकर सकारात्मक माहौल बना है। ऐसे में अब फिर से यह आशंका होने लगी है कि भाजपाइयों की राजनैतिक रस्साकशी और अधिकारियों पर अनावश्यक दवाब बनाने के इस खेल में नगर निगम का कामकाज प्रभावित होगा जिसका नुकसान शहरवासियों को होगा।




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