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प्रतीकात्मक तस्वीर
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) सदस्य न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल का दावा है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण के लिए पंजाब में जलने वाली पराली जिम्मेदार नहीं है। उन्होंने पराली जलाने के लिए राज्य के किसानों पर जुर्माना लगाने और उन्हें जेल भेजने की निंदा करते हुए इसे घोर अन्याय बताते हुए कहा कि पंजाब में पराली जलाने से दिल्ली में प्रदूषण के दावे के समर्थन में कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं हुआ है।
एनजीटी के न्यायिक सदस्य का यह बयान इसलिए अहम है, क्योंकि ज्यादातर न्यायिक कार्यवाहियों और सार्वजनिक चर्चाओं में पंजाब में धान की फसल के अवशेषों को जलाए जाने को दिल्ली में वायु प्रदूषण की बदतर स्थिति के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है।
न्यायमूर्ति अग्रवाल ने कहा कि दिल्ली में वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाना सभी की साझा जिम्मेदारी है। केवल किसानों पर मुकदमा चलाना, जुर्माना लगाना और उन्हें जेल भेजना घोर अन्याय है। पर्यावरण अनुकूल धान की खेती पर सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि पराली जलाना अक्सर दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण का मुख्य कारण माना जाता है। एजेंसी
पर्यावरण के प्रतिकूल पूसा-44 पर जोर
एक अध्ययन में सामने आया है कि पंजाब के ज्यादातर किसान अब भी लंबी अवधि और ज्यादा पानी की जरूरत वाली पर्यावरण प्रतिकूल धान की नस्ल पूसा-44 ही बो रहे हैं। ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) की रिपोर्ट में बताया गया है कि पंजाब के 11 जिलों में सर्वेक्षण किए गए 1,478 किसानों में से 36 फीसदी ने उच्च उपज के कारण पूसा-44 की खेती करते हैं। पूसा 44 को पर्यावरण के लिए हानिकारक मानते हुए राज्य सरकार ने अक्तूबर 2023 में इस किस्म को गैर-अधिसूचित कर दिया। लेकिन, निजी बीज डीलरों के जरिये यह अब भी प्रचलन में है।
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