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जंतर मंतर
– फोटो : अमर उजाला

विस्तार


जंतर मंतर में पर्यटक लंदन, जापान व स्विट्जरलैंड का सही समय देख सकेंगे। मिश्र यंत्र खगोलीय वेधशाला के दक्षिणोत्तर भित्ति और कर्क राशि वलय में मार्किंग की प्रक्रिया जल्द शुरू होगी। विशेषज्ञों के नेतृत्व में मार्बल में मार्किंग की जाएगी। इससे यहां से दिल्ली के स्थानीय समय की भी सटीक जानकारी मिलेगी। मार्किंग का कार्य एक सप्ताह में शुरू होने की संभावना है। इसके लिए टेंडर दिया गया है। अभी यहां लाइम पनिंग से मार्किंग है, जोकि संरक्षण के अभाव व समय के साथ धूमिल हो गई है। वहीं, इसके अधिकांश चिन्ह लुप्त हो चुके हैं।

मिश्र यंत्र को संरक्षित करने में आने वाली अनुमानित लागत रिपोर्ट बनाई गई है। इसमें कर्क राशि वलय, दक्षिणोत्तर भित्ति व सम्राट यंत्र शामिल हैं। कर्क राशि वलय इस यंत्र के उत्तरी दीवार पर विस्तृत क्रमिक के रूप में उत्कीर्ण है। अगर, सभी यंत्र सुचारू हो जाते हैं, तो यह जयपुर के बाद देश का दूसरा जंतर मंतर होगा, जो सुचारु अवस्था में कार्य करेगा। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, मिश्र यंत्र में मार्किंग के बाद राम यंत्र में मार्किंग की जाएगी। इसका कार्य अलग-अलग फेज में निर्धारित किया गया है, जोकि, विशेषज्ञों की निगरानी में किया जाएगा।

ध्रुव तारे की मिलेगी जानकारी

सम्राट यंत्र में वर्षों से क्षतिग्रस्त सन डायल का भी पुनर्निर्माण किया गया है। विशेषज्ञों द्वारा दिए गए आकलन के अनुसार, यहां संगमरमर से निर्मित व लोहे का सन डायल स्थापित किया गया है। मिश्र यंत्र में मार्किंग का कार्य शुरू होने के साथ ही सम्राट यंत्र में लगाए गए सन डायल को पानी के स्तर और दिशा देखकर सही जगह पर स्थापित किया जाएगा। इससे ध्रुव तारे की जानकारी ली जा सकती है। एएसआई के मुताबिक, सम्राट यंत्र एशिया की सबसे बड़ी धूप घड़ी है। इससे राजा-महाराजा ध्रुव तारा देखा करते थे। वहीं, यह भारतीय समय भी बताता है। इसके द्वारा दिन के सही समय की माप सूर्य के झुकाव से की जाती थी, जिसकी छाया संरचना के ऊपर पड़ती थी। यह यंत्र 68 फीट ऊंचा है, जिसका लगभग 60 फीट भाग धरातल की सतह से ऊपर है। इसके प्रत्येक किनारों पर घंटा, डिग्री व मिनट के चिन्ह क्रमिक रूप से अंकित हैं।

खगोलीय घटना के बारे में बताते हैं यंत्र

जंतर मंतर में मुख्य रूप से चार यंत्र मिश्र यंत्र, सम्राट यंत्र, जयप्रकाश यंत्र व राम यंत्र हैं। यह सभी यंत्र मौसम के साथ ग्रह-नक्षत्र की सूक्ष्मतम गणना, सूर्य व चंद्र ग्रहण समेत कई तरह की खगोलीय घटना के बारे में बताते हैं। इन यंत्रों में जयप्रकाश यंत्र का व्यास लगभग 27 फीट 6 इंच है। इसका उपयोग खगोलीय पिंडों, स्थानीय समय व राशिवलयों का समन्वयात्मकता मापने के लिए किया जाता था। इसी तरह राम यंत्र का प्रयोग सूर्य, सितारों न अन्य खगोलीय पिंडों की ऊंचाई व दिशा कोण मापने के लिए किया जाता था। यह कार्य इस यंत्र के केंद्र में स्थित स्तंभ के छाया की स्थिति के द्वारा किया जाता था। यह ग्रह व उपग्रह के बारे में जानकारी देता था।

1724 से 1734 ईसवी के मध्य बना था जंतर मंतर

जंतर मंतर नाम का संस्कृत में अर्थ यंत्र, गणना और सूत्र है। इसे दिल्ली की वेधशाला के नाम से भी जाना जाता है। चिनाई से निर्मित जंतर मंतर में स्थित वृहद खगोलीय यंत्र विश्व की असाधारण कृतियों में से एक है। इनसे प्राचीन खगोलीय संस्थाओं के अंतिम स्वरूप के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। इसका निर्माण आमेर के महाराजा सवाई जयसिंह ने द्वितीय (1724 से 1734) ईसवी के मध्य कराया था। मिश्र यंत्र की मान्यता है कि इसका निर्माण जयसिंह के पुत्र महाराजा माधोसिंह द्वारा कराया गया था।

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