भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A किसी विवाहित महिला को उनके पति या ससुरालवालों द्वारा होने वाली क्रूरता और उत्पीड़न से बचाने के लिए बनाई गई है. इस धारा के तहत पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा महिला के प्रति क्रूरता करने पर उन्हें तीन साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है. धारा 498A के तहत क्रूरता का मतलब है महिला को आत्महत्या के लिए प्रेरित करना, महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाना, महिला को उसके परिवार से अवैध संपत्ति या दहेज की मांग को पूरा करने के लिए मजबूर करना.
आईपीसी की धारा 498A में बदलाव की मांग
धारा 498ए गैर-जमानती, संज्ञेय, और गैरसमाधान योग्य है. अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ झूठा 498A मामला दायर किया जाता है, तो वह मानहानि का दावा कर सकता है. घरेलू हिंसा के मामलों में समझौता नहीं किया जा सकता. अगर कोई महिला 498A का मामला वापस लेना चाहे तो उसे उच्च न्यायालय में रद्द करने की याचिका दायर करनी होगी या निचली अदालत में प्रतिरोधी गवाह बनना होगा.
क्या कहते हैं कानून के जानकार
तीन दशकों से अधिक के अनुभव वाले क्रीमिनल ल़ॉयर विकास पाहवा एएनआई को दिए इंटरव्यू में कहते हैं, ‘पिछले कुछ वर्षों में इस कानून का किस तरह से शोषण किया गया है, इसका ताजा उदाहरण अतुल सुभाष का मामला है. अब इस धारा में तुरंत ही सुधार करने की जरूरत है. उन्होंने खुद व्यक्तिगत रूप से कानूनी बिरादरी, पुलिस तंत्र के कुछ लोगों और झूठे मामले दायर करने वालों द्वारा धारा 498 ए का दुरुपयोग देखा है. बड़ी संख्या में पति और उसके परिवार पर मामलों को निपटाने के लिए दबाव डालने के गुप्त उद्देश्य से दर्ज किए जाते हैं.’
क्यों होता है इस धारा दुरुपयोग?
पाहवा ने कहा, ‘इस कानून के दुरुपयोग से समाज के सामाजिक ताने-बाने पर गहरा प्रभाव पड़ता है. न केवल पति, बल्कि ससुर, सास और अन्य लोगों की ओर भी इशारा किया. परिवार के सदस्यों को अक्सर झूठा फंसाया जाता है. इनमें से अधिकतर मामले निराधार हैं और अब समय आ गया है कि कानून के ऐसे शोषण को रोकने के लिए गंभीर कार्रवाई की जाए.’
पुरुष आयोग की मांग अब पकड़ेगी जोर?
पाहवा ही नहीं एपी सिंह जैसे वकीलों ने भी भारत में दहेज कानूनों के दुरुपयोग के बारे में बढ़ती चिंता की ओर ध्यान आकर्षित किया है. एपी सिंह तो देश में पुरुष आयोग बनाना अनिवार्य करार दिया है. उनका मानना है कि वर्तमान कानूनी ढांचे को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि केवल वास्तविक मामलों को ही आगे बढ़ाया जाए. पीड़ित परिवारों को गलत कानूनी कार्रवाई से बचाने और न्याय प्रणाली की अखंडता को बनाए रखने के लिए अब इस कानून में सुधार की आवश्यकता है.
क्यों सुधार की जरूरत है?
आपराधिक मामलों की पैरवी करने वाले सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता रविशंकर कुमार कहते हैं, बेंगलुरु की घटना बेहत दुखद और दर्दनाक है. यह वास्तव में एक बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण घटना है, जिसको अदालत को देखना चाहिए. मैं मानता हूं कि ज्यादातर केसों में अब इस धारा का दुरुपयोग शुरू हो गया है. भारतीय न्याय संहिता में भी आईपीसी के सेक्शन को ही बरकरार रखा है.
बिहार के समस्तीपुर जिले के वैनी पूसा रोड के रहने वाले इंजीनियर अतुल सुभाष ने बेंगलुरु में अपने घर में सुसाइड कर लिया. सुसाइड की घटना से पहले उनके द्वारा 40 पन्ने के सुसाइड नोट और वीडियो भी जारी किया गया, जिसमें पत्नी और न्यायालय के जज पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं. अतुल सुभाष की साल 2019 में शादी हुई थी. दोनों से एक चार साल का बच्चा भी है.
Tags: Bihar News, Crime News, Dowry Harassment, Dowry murder case, Supreme Court
FIRST PUBLISHED : December 11, 2024, 18:53 IST
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