प्रयागराज: महर्षि भारद्वाज और निषाद राज की आध्यात्मिक एवं तपोभूमि प्रयागराज में 12 वर्ष बाद संगम की रीति पर दुनिया के सबसे बड़े आध्यात्मिक मेले का आयोजन 2025 में 13 जनवरी से शुरू हो जाएगा. इस महाकुंभ के दौरान भारत के कोने-कोने से आए हुए साधु संत सन्यासी एवं नागा बाबा आकर्षण के प्रमुख केंद्र होते हैं, जिनके दर्शन की लालसा आने वाली कर्म श्रद्धालुओं के मन में होती है. इसी दौरान लाखों संतों के साथ भारत के 13 प्रमुख अखाड़े भी महाकुंभ में आकर इस तपोभूमि की शोभा बढ़ाते हैं. खासकर इन अखाड़ों में सबसे बड़ा अखाड़ा जूना अखाड़ा एवं उसके नागा संन्यासी लोगों के बीच काफी लोकप्रिय होते हैं. क्योंकि इनके द्वारा मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक युद्ध लड़े गए हैं जिनके अस्त्र-शस्त्र आज भी इनके अखाड़े में प्रतीकात्मक रूप से रखे गए हैं.
मुगलों से जंग में इस्तेमाल हुए अस्त्र
लोकल 18 की ओर से श्री पंचदस नाम जूना अखाड़ा के अष्ट कौशल महंत डॉक्टर योगानंद गिरी जी महाराज से इन अस्त्र शस्त्र लेकर बात की गई. उन्होंने बताया कि इन्हीं अस्त्रों से हमने मुगलों से लड़ाई लड़ी थी फिर सन्यासी विद्रोह के दौरान अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी. इन अस्त्रों को हम कैंची बोलते हैं जो हमारे लिए पूजनीय होता है. जूना अखाड़ा हमेशा से सनातन धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ा है.
जूना अखाड़ों के सन्यासी को मिलता है प्रशिक्षण
अष्ट कौशल महंत योगानंद गिरी जी महाराज ने बताया कि जूना अखाड़े की सभी सन्यासी अस्त्र-शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं. जिससे कि कभी भी राष्ट्र एवं सनातन धर्म पर पर कोई आफत आए हम हथियार उठा सके. उन्होंने बताया कि आज भी कई आई ताई ऐसे हैं जो अस्त्र-शास्त्र की भाषा ही समझते हैं. यही वजह है कि हमारे यहां आज भी इन अस्त्रों को पूजा जाता है.
ऐसे रखते हैं इनका ख्याल
महाकुंभ में आया हुआ सबसे बड़ा अखाड़ा जूना खड़ा है जिसमें सबसे ज्यादा साधु संत एवं नागा संन्यासी शामिल है. अनी अखाड़े के बीच आपको सैकड़ों की संख्या में भाला फरसा एवं अन्य तेज धार वाले हथियार देखने को मिल जाएंगे जो लगभग 400 वर्ष पुराने हैं. उनकी देखभाल के लिए इन अस्त्रों को प्रतीकात्मक रूप से रखा जाता है. जिनको समय-समय पर घी लगाकर सुरक्षित रखा जाता है. ऐसे हजारों शास्त्र जूनागढ़ की शस्त्रागार में रखे हुए हैं जो समय आने पर सनातन धर्म की रक्षा के लिए कभी भी उठाया जा सकते हैं.
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