हैंडमेड आइटम है
फर्रुखाबाद के खुर्शीद बताते हैं कि वे हाथों से फुटवियर बनाते हैं. पहले उन्होंने धीरे-धीरे चप्पल बनाने का तरीका सीखा. लगातार 20 साल तक काम करके जब चप्पल बनाने में पारंगत हो गए तो अपने घर फर्रुखाबाद लौट आए. इसके बाद उन्होंने दस हजार रुपए की लागत से चप्पल बनाने का काम शुरु कर दिया जिससे वह इन दिनों अच्छी कमाई कर रहे हैं. वहीं इस कार्य के जरिए घर के तीन लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं.
किन जगहों पर करते हैं बिक्री
लोकल18 को दुकानदार खुर्शीद ने बताया कि वे घर, दुकानों और मेले में बिक्री करते हैं. कम रेट पर सुंदर और मजबूत होने के कारण ग्राहक और दुकानदार भी इनकी चप्पलों को हाथों-हाथ खरीद लेते हैं. यही कारण है कि अब ये अपने हाथों से विभिन्न प्रकार की फैंसी चप्पल बनाकर बिक्री कर रहे हैं. जिससे इनको महीने में पचास से साठ हजार रुपए की कमाई आसानी से हो जाती है.
रबड़ सीट, सितारे, गोटा और रॉ मैटेरियल कानपुर के मार्केट से खरीदते हैं. जिसमें एक चप्पल तैयार करने में 50 से 60 रुपए की लागत आती है. वहीं हर बुधवार कमालगंज सब्जी मंडी मार्केट में आमतौर पर इन चप्पलों की 100 रुपए में बिक्री हो जाती है. डिमांड बढ़ने पर वे हर दिन सौ जोड़ी चप्पल तैयार रहे हैं. वही डिमांड अधिक होने के कारण सौ रुपए की तीन जोड़ी भी बेच रहे हैं.
क्या है बनाने का तरीका
मशीनों के साथ ही चप्पलों को हाथों से भी तैयार किया जा सकता है. इन्हें बनाने के लिए साइज के अनुसार शीट को काटकर छेद किया जाता हैं. फिर जोड़ने के बाद इन चप्पलों को प्रिंट किया जाता है. इसके बाद इनके स्ट्रेप को फिट किया जाता है. सजावट के बाद तैयार हो जाने के बाद इन्हें पैक करके बाजार में बेचा जाता है.
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