डॉक्टर (सांकेतिक तस्वीर)
– फोटो : istock
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हर मां-बाप को अपने बच्चों से सुरक्षा मिलने की आस रहती है। लेकिन पिछले एक पखवाड़े में आधा दर्जन ऐसे मामले आए जहां रिश्तों का खून हुआ। रिश्तों में आई खटास ने बच्चों को ही अपनों का हत्यारा बना दिया।
हिंसक होने वाले बच्चों में छह साल की उम्र से बदलाव दिखने लगता है। 14 साल की उम्र तक इनमें लक्षण साफ नजर आने लगते हैं। यह बच्चे जिद्दी होते हैं। यदि इनकी मांग पूरी न हो, तो यह किसी भी हद तक जा सकते हैं। नेब सराय की घटना इसका बढ़ा उदाहरण हैं जिसमें बेटे ने अपने पिता, मां और बड़ी बहन की हत्या कर दी थी। इस घटना में पिता के डाटने की आदत ने बेटे को हिंसक बना दिया।
डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में मनोरोग विभाग के प्रोफेसर डॉ. लोकेश शेखावत बताते हैं कि ऐसे बच्चे परिवार में खुद का मूल्य नहीं समझते। उनमें गुस्सा ज्यादा होता है। वह छोटी-छोटी बात पर नाराज हो जाते हैं। इसे पैरानॉयड पर्सनैलिटी डिसऑर्डर करते हैं। यह बच्चे कभी अपनी गलती नहीं मानते, बल्कि अपनी गलती के लिए भी दूसरे को जिम्मेदार ठहराते हैं। इनमें किसी बात को लेकर नाराजगी धीरे-धीरे बढ़ती जाती है। एक समय के बाद यह परिवार को ही अपना दुश्मन मान लेते हैं। यदि यह अपराध करते हैं तो उसपर शर्मिंदा होने की जगह उसे छुपाने का प्रयास करते हैं।
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