Charles Stuart- More Hindu than British: कोलकाता की सबसे व्यस्त सड़कों में से एक पर स्थित है साउथ पार्क स्ट्रीट कब्रिस्तान. यह जगह व्यस्त होने के बावजूद शोर शराबे से दूर है. कब्रिस्तान के प्रवेश द्वार पर दो पुराने लोहे के गेट हैं. अंदर, दोनों तरफ बेतरतीब मकबरों और छतरियों की पंक्तियां फैली हुई हैं. जो यहां दफनाए गए लोगों के परिजनों ने उन्हें छांव देने के लिए बनाई होंगी. बाईं ओर के खंभे पर लगी एक संगमरमर की पट्टिका बताती है कि कब्रिस्तान 1769 में खोला गया और 1790 में बंद कर दिया गया. लेकिन इतिहासकार बताते हैं कि 1830 के दशक तक यहां मृत लोगों को दफनाना जारी रहा.
लेकिन यहां तमाम कब्रों पर बने मकबरे में अगर सबसे सुंदर ढांचे की बात की जाए तो यह सम्मान चार्ल्स स्टुअर्ट (1758-1828) के मकबरे को जाता है. जिन्हें ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी के रूप में हिंदू स्टुअर्ट के नाम से जाना जाता था. हिंदू, यूरोपीय और इस्लामी शैलियों का सुंदर मिश्रण यह मकबरा इस जगह पर एक विदेशी मेहमान की तरह दिखता है. मेजर जनरल चार्ल्स स्टुअर्ट ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के उन अधिकारियों में से एक थे, जिन्होंने भारतीय संस्कृति को अपनाया. स्टुअर्ट की जीवनी लिखने वाले सीपी हडसन ने अपनी किताब में बताया, “उन्होंने, इस देश के निवासियों की भाषा, रीति-रिवाज और परंपराओं का बहुत उत्साह के साथ अध्ययन किया था. उनकी भारतीयों के साथ नजदीकी ने उन्हें हिंदू स्टुअर्ट का नाम दिलाया.”
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नियमित पूजा करते थे स्टुअर्ट
द पीपल ट्री की एक रिपोर्ट के अनुसार अपनी अलग तरह की आदतों के लिए जाने जाने वाले मेजर जनरल स्टुअर्ट हिंदू बन गए थे. वह नियमित रूप से पूजा करते थे, भारतीयों को ‘जय सियारामजी’ कहकर अभिवादन करते थे. उन्हें हिंदू धर्म अपनाने वाला पहला ब्रिटिश अधिकारी माना जाता है. चार्ल्स स्टुअर्ट भारत में मिशनरियों की धर्मांतरण गतिविधियों के खिलाफ आवाज उठाते थे. इस कारण उन्हें ‘हिंदू स्टुअर्ट’ कहा जाने लगा. एक अलग तरह की शख्सियत के मालिक के शुरुआती जीवन के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है. माना जाता है कि स्टुअर्ट का जन्म 1757 या 58 में आयरलैंड के गॉलवे में हुआ था. वह अपने किशोरावस्था के अंत में भारत आए और उनमें हिंदू धर्म और भारतीय लोगों के प्रति गहरी दिलचस्पी पैदा हुई.
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धर्मांतरण के खिलाफ लिखी किताब
स्टुअर्ट ने भारत में अपने शुरुआती दिनों में दो किताबी लिखीं. इनमें से पहली किताब प्रमुख मिशनरी क्लॉडियस बुकानन द्वारा भारतीयों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के तर्कों के जवाब में थी. स्टुअर्ट ने बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के प्रयासों के खतरों के बारे में चेतावनी दी थी. उन्होंने लिखा था, “क्या यह बुद्धिमानी है, क्या यह राजनीतिक है, क्या यह सुरक्षित भी है, कि हम अपने गंगा के वफादार प्रजा के खिलाफ भावनाओं का युद्ध छेड़ें. मिशनरियों या अपने ही पादरियों को उनके बीच मूर्तिपूजा और अंधविश्वास की गलतियों का प्रचार करने दें और इस प्रकार सार्वजनिक मन में अविश्वास और असंतोष के बीज बोएं?” स्टुअर्ट ने नोट किया, “हिंदू धर्म को ईसाई धर्म के सुधारात्मक हाथ की बहुत कम जरूरत है.”
कलकत्ता के अखबारों में लिखे लेख
लेकिन स्टुअर्ट को अधिकतर उनके उन पत्रों के लिए याद किया जाता है जो उन्होंने कलकत्ता के अखबारों में प्रकाशित करवाए थे. इन लेखों में उन्होंने भारत में ब्रिटिश महिलाओं को कैसे कपड़े पहने जाएं यह सलाह दी थी. बाद में इन्हें ‘लेडीज मॉनिटर’ शीर्षक के तहत प्रकाशित किया गया. इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल ने अपनी पुस्तक ‘व्हाइट मुगल्स’ में ‘लेडीज मॉनिटर’ का जिक्र किया है. स्टुअर्ट ने अपने लेखों में ब्रिटिश महिलाओं को साड़ी पहनने की सलाह दी थी, यह कहते हुए कि यह समकालीन यूरोपीय फैशन से कहीं अधिक आकर्षक परिधान है. जब स्टुअर्ट उत्तर भारत में सबसे बड़ी घुड़सवार रेजिमेंटों में से एक की कमान संभाल रहे थे, तो उनके डिप्टी विलियम लिनियस गार्डनर थे. उन्होंने अपने कई पत्रों में उनका उल्लेख किया है. गार्डनर ने लिखा कि स्टुअर्ट अपने पूर्ववर्ती अफसरों के विपरीत पार्टियों के शौकीन नहीं थे जो कि भारत में औपनिवेशिक जीवन का एक हिस्सा हुआ करती थीं.
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उनके निजी संग्रह में थीं देवताओं की मूर्तियां
स्टुअर्ट ने कलकत्ता के वुड स्ट्रीट स्थित अपने घर में एक निजी संग्रहालय बनाया था. इस कलेक्शन में हथियार, कपड़े, मूर्तियां, प्राचीन इतिहास के नमूने और एक पुस्तकालय शामिल था. ब्रिटिश सेना के अधिकारी सर जॉर्ज बेल ने अपनी डायरी में लिखा, “हिंदू देवी देवताओं की संख्या 33 करोड़ है… मैं यह नहीं कहता कि जनरल ने इतने सारे इकट्ठे किए हैं, लेकिन उनके पास सबसे बड़ा कलेक्शन है जो मैंने देखा है.” बेल ने स्टुअर्ट के कलेक्शन में ब्रह्मा, विष्णु और शिव की बड़ी पत्थर की मूर्तियों को देखा. लेकिन संभावना है कि अपने संग्रह के लिए कई मूर्तियां स्टुअर्ट ने चुराई हों. यह सच है कि उन्होंने मूर्तियां चुराई थीं. एक रिपोर्ट मिलने के बाद जर्नल ऑफ द एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल के संस्थापक संपादक जेम्स प्रिंसेप ने खुद उस अधिकारी की पहचान के बारे में पूछताछ की और पता चला कि वह मेजर जनरल चार्ल्स स्टुअर्ट थे.
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ब्रिटिश म्यूजियम पहुंच गया संग्रह
स्टुअर्ट का संग्रह आखिरकार ब्रिटिश म्यूजियम में पहुंच गया, जो अपने आप में एक कहानी है. 1828 में उनकी मृत्यु के बाद स्टुअर्ट के पूरे संग्रह की नीलामी 1829 और 1830 में लंदन के क्रिस्टीज में की गई और अधिकांश वस्तुएं जॉन ब्रिज नामक एक व्यक्ति ने खरीदीं. वह प्रसिद्ध आभूषण कंपनी रंडेल, ब्रिज और रंडेल में पार्टनर थे. ये वस्तुएं ब्रिज परिवार के पास 1872 में जॉर्ज ब्रिज की मृत्यु तक रहीं, जिसके बाद इन्हें फिर से नीलाम किया गया. दिलचस्प बात यह है कि नीलामी में केवल एक बोलीदाता था, जिसका नाम ए डब्ल्यू फ्रैंक्स था, वह ब्रिटिश म्यूजियम के ट्रस्टी थे. नीलामीकर्ता के विरोध के बावजूद फ्रैंक्स ने पूरे संग्रह के लिए बोली लगाई. यह राशि भी ब्रिज की बेटियों को नहीं दी गई. 2018 में ब्रिटिश म्यूजियम के एशिया विभाग के दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया सेक्शन के प्रमुख के रूप में रिटायर हुए टी रिचर्ड ब्लर्टन बताते हैं कि स्टुअर्ट का संग्रह संग्रहालय के लिए भारतीय मूर्तिकला का सबसे महत्वपूर्ण उपहार है. उन्होंने कहा, “स्टुअर्ट हिंदू कला के पीछे के विचारों की परवाह करते थे और उन्हें समझते थे, और उन कलाकृतियों की सराहना करते थे जो इन विचारों को प्रकट करने का प्रयास करती थीं.”
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उनके कलेक्शन में थी दुर्लभ हरिहर मूर्ति
स्टुअर्ट की मूर्तियों को आज ‘द ब्रिज कलेक्शन’ के नाम से जाना जाता है. इसमें सबसे सुंदर एक बड़ी बलुआ पत्थर की हरिहर मूर्ति है. विष्णु और शिव का यह संयुक्त रूप छोटी मानव आकृतियों से घिरा हुआ है. माना जाता है कि यह मूर्ति लगभग 1000 ईस्वी की है और यह मध्य प्रदेश के खजुराहो से है. स्टुअर्ट ने इस विशेष मूर्ति को कैसे प्राप्त किया, यह स्पष्ट नहीं है. क्योंकि उनके अधिकांश व्यक्तिगत कागजात या तो खो गए हैं या नष्ट हो गए हैं. क्या इन मूर्तियों को उनके मूल स्थानों पर वापस किया जाना चाहिए? भारत ने 2018 में इस बारे में ब्रिटिश म्यूजियम से संपर्क किया और एक ईमेल में उन्होंने कहा, “हम मानते हैं कि हरिहर जैसी वस्तुएं और सामान्य रूप से दक्षिण एशिया के संग्रह यहां बने रहें.”
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कई बार ढहाया गया स्टुअर्ट का मकबरा
ऐसा लगता है कि भारत को स्टुअर्ट के कलेक्शन के बजाय उनके अवशेषों से संतोष करना होगा. 31 मार्च 1828 को उनकी मृत्यु के बाद, उन्हें कोलकाता के साउथ पार्क स्ट्रीट कब्रिस्तान में दफनाया गया था. एक हिंदू मंदिर जैसा दिखने वाला उनका मकबरा अब कब्रिस्तान में एक प्रमुख आकर्षण है. हालांकि इसे कई बार तोड़ा गया है, आखिरी बार 2018 में लेकिन यह अभी भी खड़ा है. 1984 में, यह मकबरा रियल एस्टेट के कारोबारियों के लालच का शिकार होते-होते बचा. कलकत्ता हाईकोर्ट के कानूनी हस्तक्षेप के कारण यह कब्रिस्तान आज भी मौजूद है. एक आदेश जारी किया गया था जिसमें एक मशहूर स्थानीय बिजनेसमैन को कब्रिस्तान को कला केंद्र में बदलने से रोका गया था. हालांकि हाईकोर्ट के रोक लगाने से पहले विध्वंस का काम शुरू हो चुका था और नुकसान आज भी देखा जा सकता है. अनगिनत कब्रें खो गईं, उनकी जगह बिखरे हुए मलबे और एक बहुमंजिला कार पार्क ने ले ली. चार्ल्स स्टुअर्ट का मकबरा भी ध्वस्त कर दिया गया था, बाद में इसे फिर से बनाया गया.
Tags: British Raj, Kolkata News
FIRST PUBLISHED : December 6, 2024, 16:25 IST
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