सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में ग्रेप 4 की पाबंदियों से प्रभावित निर्माण श्रमिकों को पूरा मुआवजा नहीं देने पर दिल्ली सरकार को फटकार लगाई। शीर्ष अदालत ने दिल्ली सरकार से पूछा कि उसके निर्देशों के बावजूद श्रमिकों को पूरे पैसे क्यों नहीं दिए गए? क्या सरकार चाहती है कि श्रमिक भूखे मरें? कोर्ट ने कहा कि यह अवमानना का मामला है और हम अवमानना नोटिस जारी करेंगे।
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ दिल्ली में प्रदूषण को लेकर सुनवाई कर रही थी। पीठ ने दिल्ली सरकार से पूछा कि पाबंदियां लागू होने के बाद कितने मजदूरों को मुआवजा दिया गया। दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव की ओर से बताया गया कि 90 हजार मजदूरों को 2,000 रुपये का भुगतान किया गया है। उन्होंने शेष 6,000 रुपये के भुगतान के लिए 10 दिन का समय मांगा। इस पर जस्टिस ओका ने कहा, आपने अब तक 2000 का ही भुगतान क्यों किया। शेष राशि का भुगतान कब करेंगे? आप चाहते हैं कि श्रमिक भूखे रहें? हम सीधे आपको अवमानना नोटिस जारी कर रहे हैं। यह एक कल्याणकारी राज्य है। तब मुख्य सचिव ने पीठ से कहा कि शुक्रवार को भुगतान कर दिया जाएगा।
यूपी, राजस्थान, हरियाणा ने दी जानकारी : उत्तर प्रदेश सरकार ने शीर्ष कोर्ट को बताया कि ग्रेप 4 से उसके आठ जिले प्रभावित हुए। पोर्टल पर पंजीकृत 4.88 लाख श्रमिकों में से लगभग 80,000 को भुगतान किया गया। राजस्थान ने कहा कि उसके दो जिले प्रभावित हुए हैं। इनमें 2,635 श्रमिकों में से 2,063 को भुगतान किया गया है। उसने भी धनराशि नहीं बताई। वहीं, हरियाणा ने बताया कि ग्रेप 4 से उसके 14 जिले प्रभावित हुए।
एनसीआर के राज्य श्रमिक संगठनों संग बैठक करें
अदालत ने दिल्ली के साथ ही राजस्थान, यूपी व हरियाणा सरकारों को श्रमिक संगठनों के साथ बैठक कर उनसे ऑनलाइन पोर्टल पर श्रमिकों को पंजीकृत करवाने की अपील करें, ताकि वे निर्वाह भत्ता प्राप्त करने के पात्र बन सकें। निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध के कारण बेरोजगार हुए श्रमिकों को निर्वाह भत्ता देने में चूक को लेकर पिछली सुनवाई को कोर्ट ने एनसीआर राज्यों के मुख्य सचिवों को वर्चुअली पेश होने के लिए बुलाया था।
90,000 श्रमिक होने पर हैरानी जताई
पीठ ने इस तथ्य पर आश्चर्य व्यक्त किया कि दिल्ली में केवल 90,000 श्रमिक हैं। मुख्य सचिव ने कहा कि यह पंजीकृत श्रमिकों की संख्या है। एक हस्तक्षेपकर्ता ने कहा कि लगभग 12 लाख श्रमिक हैं, जिनका पंजीकरण समाप्त हो गया है। पीठ ने मुख्य सचिव से सवाल किया, आपने अन्य निर्माण श्रमिकों को पोर्टल पर पंजीकरण के लिए क्या प्रयास किए। क्या आपने कोई सार्वजनिक नोटिस जारी किया? अपने कुछ नहीं किया। पीठ ने आदेश में कहा: “राज्य ने अन्य निर्माण श्रमिकों को यह सूचित करने का कोई प्रयास नहीं किया है कि यदि वे पोर्टल पर खुद को पंजीकृत करते हैं तो उन्हें निर्वाह भत्ता प्राप्त करने की अनुमति दी जाएगी। मुख्य सचिव की दलीलों से ऐसा लगता है कि दिल्ली सरकार ने यह भी नहीं सोचा कि 90,693 से अधिक श्रमिक हो सकते हैं।
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