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विजय मिश्रा (उदय भूमि)
नई दिल्ली। ना देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मैजिक फीका पड़ा है, न उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता में कोई कमी आई है। महाराष्ट्र में विधान चुनाव के नतीजे हों या यूपी में विस उपचुनाव के परिणाम, दोनों अहम राज्यों में मतदाताओं ने एक बार फिर भाजपा को फील गुड कराया है। झारखंड में बेशक भाजपा को सत्ता नहीं मिल पाई, मगर वहां भगवा पार्टी अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराने में सफल रही है। यूपी में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन को मतदाताओं का साथ नहीं मिल पाया है। महाराष्ट्र में शरद पवार, उद्धव ठाकरे जैसे नेताओं को जनता ने पूरी तरह से नकार दिया है। महाराष्ट्र विस चुनाव के नतीजे आने के बाद कांग्रेस खेमे में सन्नाटा पसर गया है। महाराष्ट्र विस में कांग्रेस अब नेता प्रतिपक्ष का दर्जा भी खो बैठी है। चुनावी मौसम में बंटेंगे तो कटेंगे और एक हैं तो सेफ है का नारा हिट होता दिखाई दिया है। महाराष्ट्र में मराठा फैक्टर और बेरोजगारी का मुद्दा महाविकास अघाड़ी के पक्ष में नहीं रहा है। दरअसल मतों के ध्रुवीकरण ने इन मुद्दों को काफी पीछे छोड़ दिया।

वहीं, महायुति के लिए हिंदुत्व जैसा मुद्दा लाना जरूरी है जो देशभर में मजबूत रहा है। महायुति को जैसी उम्मीद थी, योगी और मोदी के नारे काम कर गए। हरियाणा में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने यह नारा उछाला था, जिसका नतीजा भाजपा की जीत के रूप में रहा। हालांकि जब भाजपा ने योगी के ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ वाले बैनर महाराष्ट्र में लगाए तो इसकी तीखी प्रतिक्रिया सामने आई थी, क्योंकि महाराष्ट्र में इस तरीके का हिंदुत्व नहीं चलता जो उत्तर प्रदेश या हरियाणा में चला है। मगर, नतीजे सामने आने के बाद यह साफ हो गया है कि महाराष्ट्र की राजनीति में भी ध्रुवीकरण का दौर शुरू हो गया। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने ‘संविधान बचाओ’ का नारा दिया था। खासतौर पर यह नारा यूपी के लोकसभा क्षेत्रों में काम कर गया था। ये एक बड़ा नैरेटिव था जो महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में नहीं चल पाया। वहां केंद्र सरकार के खिलाफ जो माहौल था वो भी नहीं है। मराठा आरक्षण का दांव भी कांग्रेस का नहीं चला। माना जा रहा है कि महाराष्ट्र चुनाव में आरएसएस ने मोर्चा संभाल रखा था। हरियाणा की तरह यहां भी आरएसएस के कार्यक्रता सक्रिय थे। दरअसल लोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा के खराब प्रदर्शन के पीछे संघ के चुनावों से दूरी को माना जा रहा था।

मगर जब भाजपा यूपी में कई क्षेत्रों से हार गई तो फिर से चुनावों में संघ को लगाया गया। मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार की ‘लाडली बहन योजना’ के बाद महाराष्ट्र की महायुति सरकार ने भी इस साल जून में ‘मुख्यमंत्री-मेरी लाडली बहन योजना’ की शुरुआत की। इस योजना के तहत पात्र महिलाओं को प्रतिमाह 1500 रुपये दिए जा रहे हैं। माना जा रहा है कि भाजपा की प्रचंड जीत में इस फैक्टर का भी बड़ा योगदान था। महाराष्ट्र चुनाव में महाविकास अघाड़ी गठबंधन में शामिल कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को लेकर राज्य सरकार को घेरती रही। ऐसे में विपक्षी गठबंधन महाविकास अघाड़ी को उम्मीद थी कि उन्हें चुनाव में मतदाताओं का साथ मिलेगा। मगर, नतीजे इसके उलट रहे। महाराष्ट्र में सोयाबीन की एमएसपी की गारंटी का मुद्दा भी नहीं चला। कुछ माह पहले संपन्न लोकसभा चुनाव में सपा ने जिस पीडीए फॉर्मूले के तहत सबसे ज्यादा सीटें हासिल की थी, वह फॉर्मूला भी यूपी विस के उपचुनाव में कारगर साबित नहीं हो सका।




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