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- Dalit Houses Were Burnt In 2014, Now 98 Have Been Given Life Imprisonment
हुबली3 घंटे पहलेलेखक: राम राज डी
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कर्नाटक के माराकुम्बी गांव में कोर्ट के फैसले के बाद दलित और ऊंची जाति के लोगों में विवाद की आशंका बढ़ गई है।
देश में एक साथ सबसे ज्यादा 98 लोगों को हाल ही में उम्रकैद की सजा मिली तो कर्नाटक के कोप्पल जिले का माराकुम्बी गांव सुर्खियों में आ गया। इस मामले में अब एक मार्मिक पक्ष सामने आया है।
आमतौर पर ऐसे मामलों में सजा मिलने पर दोषी परिवार मातम मनाते हैं। पीड़ित परिवार या तो खुश होते हैं या संतोष जताते हैं। हालांकि, दलितों पर हमले और आगजनी की घटना के 10 साल बाद कोर्ट के फैसले से माराकुम्बी गांव में पीड़ित और दोषी, दोनों ही परिवारों में मातम और हताशा है।
अब उन्हें यह डर है कि फैसले से उनका गांव में साथ रहना और मुश्किल हो जाएगा। यह हकीकत तब सामने आई, जब दैनिक भास्कर इस चर्चित मामले का जमीनी सच जानने कनकगिरि स्टेट हाईवे के किनारे बसे माराकुम्बी पहुंचा। पहले यह बैकग्राउंड पढ़िए…
यह मामला अब चर्चा में क्यों? पढ़िए ग्राउंड रिपोर्ट 24 अक्टूबर, 2024 को कोप्पल डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन्स कोर्ट का दलितों के उत्पीड़न मामले पर फैसला आया। सेशन्स कोर्ट के जज चंद्रशेखर सी ने मामले में 101 लोगों को दोषी ठहराया। इनमें 98 लोगों को SC/ST (प्रिवेंशन ऑफ एस्ट्रोसाइट्स) एक्ट, 1989 और IPC की धाराओं के तहत आजीवन कारावास और 5-5 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई।
तीन दलित आरोपियों को 5 साल कैद और 2-2 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई गई। कोर्ट ने 21 अक्टूबर को आरोपियों को दोषी ठहराया था। 24 अक्टूबर को जेल भेजने से पहले एक दलित दोषी की मौत हो गई। बाकी के दोषियों को बल्लारी सेंट्रल जेल भेजा गया।
इधर, माराकुम्बी के लोग डर और सदमे में हैं। करीब 2 हजार आबादी वाले इस गांव में सामुदायिक तनाव की आशंका बढ़ गई है। 24 घंटे कर्नाटक रिजर्व पुलिस के जवान तैनात रहते हैं। लोगों में मीडिया के खिलाफ भी आक्रोश है। उनका कहना है कि मामला सुर्खियों में नहीं आता तो गांव की इतनी बदनामी नहीं होती।
लोगों के गुस्से से बचने के लिए मीडिया के लोग बिना प्रेस स्टिकर वाली गाड़ियों से गांव पहुंचते हैं। दोनों पक्षों ने काफी मनाने के बाद ने दैनिक भास्कर से बात की।
सेशन्स कोर्ट के फैसले के बाद माराकुम्बी में कर्नाटक रिजर्व पुलिस फोर्स तैनात है।
दलित बोले- कोर्ट के फैसले के लिए लोग हमें दोषी ठहरा रहे दलितों ने कैमरे के सामने कुछ भी बोलने से मना कर दिया। अपना नाम नहीं बताने की शर्त भी रख दी। कुछ दलित बुजुर्गों ने ऑफ कैमरा बताया, ‘हम आरोपियों को उम्रकैद की सजा मिलने से हैरान हैं। हम कानून के फैसले का सम्मान करते हैं, लेकिन हमने ऐसी कठोर सजा की उम्मीद नहीं की थी। 2014 की घटना के बाद सब सामान्य हो गया था।’
‘हमने एक-दूसरे के खिलाफ दुश्मनी को दफन कर दिया था। हम उनकी (उच्च जाति की) जमीनों पर काम करते थे। गरीब ऊंची जाति के मजदूर हमारी जमीन पर खेती करने में भी हमारी मदद करते थे। कुछ संपन्न किसान हमारी जमीनों की जुताई और फसलों की ढुलाई के लिए अपने टिलर और ट्रैक्टर भी उधार दे देते थे। अब इस फैसले से सब खत्म हो गया।’
दलित बस्ती की ओर जाने वाली सड़क पर सन्नाटा दिखा। तनाव के डर से लोग सुबह होते ही काम पर निकल जाते हैं।
दलितों ने कहा, ‘अब हमें सड़कों पर अकेले चलने से भी डर लगता है। हम पर भद्दी टिप्पणियां की जाती हैं। आरोपियों के परिवारों पर जो आफत आई है, गांव के लोग उसके लिए हम पर उंगली उठा रहे हैं। हमें विलेन के रूप में देखा जा रहा है। हमें अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए डर लग रहा है, क्योंकि मीडिया कवरेज के कारण हम सुर्खियों में आ गए हैं।’
‘हम तो इंसाफ पाकर भी नुकसान में हैं। आस-पड़ोस के गांव वाले भी कोर्ट के फैसले के लिए हमें दोषी मानने लगे हैं। हमें नहीं लगता कि किसी गांव के लोग अपने बच्चों की शादी हमारे बच्चों से करेंगे। कोर्ट के फैसले से राहत मिलने की जगह हमें अपने भविष्य का डर ज्यादा लगा है।’
मुख्य दोषी को छोड़कर 99 को हाई कोर्ट से जमानत मिली सेशन्स कोर्ट से उम्रकैद की सजा मिलने के बाद मुख्य दोषी मंजूनाथ को छोड़कर बाकी 99 दोषियों ने कर्नाटक हाई कोर्ट में जमानत की याचिका लगाई थी। 13 नवंबर को हाई कोर्ट की धारवाड़ बेंच ने सभी को जमानत दे दी।
जस्टिस श्रीनिवास हरीश कुमार और जस्टिस टी.जी. शिवशंकर गौड़ा की बेंच ने हर एक दोषी पर एक जमानतदार के साथ 50,000 रुपए का मुचलका लगाया। कुछ दोषी मीडिया से बचने के लिए 16 नवंबर को रात के अंधेरे में गांव लौटे। कुछ लोग दूसरे गांवों में अपने रिश्तेदारों के घर चले गए।
दोषियों का परिवार बोला- हम तबाह हो गए दलितों की तरह ऊंची जाति में कोई भी मीडिया से बात करने को तैयार नहीं था। सभी अपने रोजमर्रा के कामों में व्यस्त दिखे। किसानों का परिवार धान की फसल की कटाई के बाद उसे बेचने की तैयारियों में जुटा था। बुजुर्ग और बच्चे चुपचाप समय गुजार रहे थे।
एक पेड़ के नीचे पत्थर की बेंच पर हमें एक बुजुर्ग मिले। उनसे कई बार बात करने की कोशिश की। कुछ सवाल पूछे, लेकिन उन्होंने हाथ हिलाकर बात करने से साफ इनकार कर दिया। बाद में पता चला कि उनके सभी पांच बेटों को सेशन्स कोर्ट ने दोषी ठहराया है।
इस बुजुर्ग के सभी 5 बेटों को मामले में दोषी ठहराया गया है। इन्होंने बात करने से मना कर दिया।
फिर हम पार्वती से मिले। उनके परिवार के 5 सदस्यों की भी सेशन्स कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है। वह शुरू में हमसे बात करने से झिझक रही थीं। उनका आरोप था कि मीडिया अपने हिसाब से उनकी बातों और भावनाओं में हेरफेर कर रहा है। बहुत समझाने के बाद, पार्वती बोलने के लिए राजी हुईं।
पार्वती ने बताया, ‘कुछ लोगों ने अपराध किया, लेकिन सजा 98 लोगों को मिली। इस साल पहली बार हमने दिवाली नहीं मनाई। हमारे समुदाय के अधिकांश मर्द बल्लारी जेल में बंद थे। सेशन्स कोर्ट के फैसले से हम टूट गए हैं।’
‘हाई कोर्ट से जमानत मिलने के कारण हमें थोड़ी राहत मिली है, लेकिन 50 हजार रुपए का बेल बॉन्ड बहुत ज्यादा है। हमारे जैसे कुछ और परिवार तो ऐसे हैं जिनके चार से पांच सदस्यों को दोषी ठहराया गया है। हम सब खेती से होने वाली आमदनी और दिहाड़ी मजदूरी से अपना जीवन यापन करते हैं। ऐसे में इतनी जमानत राशि कैसे चुका पाएंगे? हम तो तबाह हो गए।’
ग्रामीण सूत्रों ने बताया, ‘ऊंची जाति के लोगों ने जमानत का बहुत ज्यादा जश्न नहीं मनाया क्योंकि मामला अभी भी हाई कोर्ट में पेंडिंग है।’
दोषियों में एक के वकील उमेश मालेकोप्पा ने दैनिक भास्कर को बताया, ‘आरोपियों को राहत मिली है कि उन्हें हाई कोर्ट से जमानत मिल गई है। कुछ आरोपियों को उम्मीद है कि वे भी बरी हो जाएंगे।’
पुलिस बोली- हम 2014 में भी यहीं तैनात थे, दस सालों में हालात बदले
गांव में तैनात एक पुलिस अधिकारी ने बताया, ‘पुलिस कर्मियों के लिए खाने और रहने की सुविधा दी गई है। दो वैन हमेशा यहां तैनात रहती हैं। रोटेशन के आधार पर हमारी ड्यूटी लगती है। हम 24 घंटे स्थिति पर नजर रख रहे हैं।’
‘2014 में हिंसा के बाद भी हममें से कुछ को इसी गांव में तैनात किया गया था। तब हम जूनियर पदों पर थे। दस सालों में गांव में बहुत कुछ बदल गया है। कई लोग और पैसे वाले हो गए है। सुविधाएं बेहतर हो गई हैं।’
दुश्मनी के बीज 2003 में बोए गए थे, 2014 की हिंसा इसका नतीजा
हम माराकुम्बी में ऊंची जाति और दलितों के विवाद के और तह में गए। 2014 से पहले दोनों समुदाय में कैसे रिश्ते थे, ये जानने की कोशिश की। पता चला कि 2014 की हिंसा 2003 में शुरू हुई दुश्मनी का नतीजा थी।
जमींदार का कब्जा था, कलेक्टर ने दलितों की मांग पर खाली करवाया गांव के सूत्रों ने बताया, ‘माराकुम्बी में ऊंची जाति और दलितों के बीच कई पीढ़ियों से दुश्मनी चली आ रही है। ऊंची जाति के लोग दलित युवकों पर अपनी बहन-बेटियों को छेड़ने का आरोप लगाते हैं। दलित कहते हैं, ऊंची जाति वाले छुआछूत की भावना रखते हैं। वे ऊंची जाति पर शारीरिक शोषण का भी आरोप लगाते हैं।’
‘दोनों समुदाय के बीच कई बार छिटपुट झड़प हुईं। साल 2003 में एक कम्युनिटी हॉल को लेकर तनाव बढ़ गया। इसे समाज कल्याण विभाग ने बनाया था। ऊंची जाति का एक जमींदार कम्युनिटी हॉल में अपनी धान की फसल रखता था। दलितों ने इस पर आपत्ति जताई।’
‘दलितों ने कम्युनिटी हॉल खाली कराने की मांग की। उनका कहना था कि कम्युनिटी हॉल पर सबका अधिकार है। वे सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए उसका इस्तेमाल करना चाहते थे। जमींदार ने इससे नाराज होकर दलित युवकों के साथ मारपीट की। उन पर धान चुराने का भी आरोप लगाया।’
2003 में इसी कम्युनिटी हॉल को लेकर दलित और ऊंची जाति के बीच विवाद हुआ था।
सैलून-होटलों में दलितों के जाने पर रोक लगाई
ग्रामीणों के मुताबिक, ‘तत्कालीन कलेक्टर नागालंबिका देवी ने ग्रामीणों के साथ बैठक की और कम्युनिटी हॉल से धान हटवाकर गोदाम में रखवा दिया। तभी से दोनों समुदायों के बीच तनातनी बढ़ गई।’
‘ऊंची जाति के लोगों ने सैलून, होटलों, यहां तक की किराने की दुकानों में भी दलितों के जाने पर रोक लगा थी। पड़ोसी होकर भी दोनों समुदायों में बातचीत नहीं होती थी। एक-दूसरे को देखना भी पसंद नहीं करते थे। 2014 की हिंसा इसी नफरत का नतीजा था।’
माराकुम्बी में विवाद की आशंका के कारण सैलून पर ताला लटका है।
हालांकि, समय हर जख्म भर देता है। सूत्रों का मुताबिक, माराकुम्बी के लोगों की दुश्मनी समय के साथ कम होते गई। 2016 तक सब कुछ ठीक हो गया। ऐसा लगा जैसे दोनों समुदायों ने एक-दूसरे के प्रति नफरत को दफना दिया। शांति से अपना-अपना काम करने लगे थे। अब सेशन्स कोर्ट ने ऊंची जाति के 98 आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा देकर मामला मामला उलट-पुलट कर दिया है।’
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