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निदेशक प्रोफेसर डॉ. पिकी सक्सेना
– फोटो : अमर उजाला

विस्तार


गर्भकाल के शुरुआती दो माह में यदि गर्भवती में ब्लड शुगर 110 से अधिक है, तो उनमें चलकर मधुमेह होने की आशंका बढ़ जाती है। इसका खुलासा लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग के एक शोध से हुआ है। इस शोध को एम्स के एक कार्यक्रम में प्रस्तुत किया गया। इन गर्भवती में डिलीवरी के दौरान कई परेशानी होती है।

विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भवती महिला में जब प्लेसेंटा बनने लगता है। तो इससे कुछ ऐसे हार्मोन निकलते हैं जो मधुमेह को बढ़ाते हैं। प्लेसेंटा गर्भावस्था के दौरान गर्भाशय में विकसित होने वाला एक अस्थायी अंग है। यह गर्भनाल के जरिए बच्चे को ऑक्सीजन और पोषक तत्व पहुंचाता है। गर्भकाल बढ़ने के साथ हार्मोन भी बढ़ते हैं तो मधुमेह की आशंका को प्रबल करते हैं।

लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग में निदेशक प्रोफेसर डॉ. पिकी सक्सेना ने बताया कि शोध में 200 गर्भवती को शामिल किया गया। ग्लूकोज देने के  दो घंटे बाद इनकी जांच की गई। जिन गर्भवती में ब्लड शुगर 110 से अधिक था, उन 95 फीसदी गर्भवती में आगे चलकर मधुमेह पाया गया। वहीं जिन गर्भवती का ब्लड शुगर 110 से कम रहा उसमें एक फीसदी गर्भवती को मधुमेह हुआ। 

समय पर इलाज से रोकथाम संभव

गर्भकाल के शुरुआती सप्ताह में यदि महिलाओं पर नजर रखी जाए तो उनमें डिलीवरी तक होने वाली समस्या को रोका जा सकता है। डॉ. सक्सेना ने कहा कि गर्भकाल के शुरुआती दो माह में जांच से मधुमेह होने की आशंका को पकड़ा जा सकता है। इसकी पकड़ के बाद खान-पान में बदलाव कर, व्यायाम करवाकर व दवाओं से डिलीवरी के बाद गर्भवती में होने वाले मधुमेह की समस्या को रोका जा सकता है।

40 फीसदी की जांच पॉजिटिव

गर्भवती में ब्लड शुगर की पकड़ के लिए लेडी हार्डिंग की ओपीडी में आने वाली गर्भवती महिला का डिप्सी टेस्ट किया जाता है। इसमें करीब 40 फीसदी गर्भवती की रिपोर्ट पॉजिटिव पाई जा रही है। डिलीवरी के बाद ऐसी महिलाओं में मधुमेह का स्तर कम हो जाता है। लेकिन कई महिलाओं को आगे चलकर टाइप 2 मधुमेह होने की आशंका रहती है। 

बच्चे में हो सकती है समस्या

गर्भावस्था के दौरान जब महिला में ब्लड शुगर ज्यादा बनता है तो प्लेसेंटा के माध्यम से वह बच्चे में भी जा सकता है। गर्भकाल के 10 से 11 सप्ताह में बच्चे में पैंक्रियाज का विकास होता है। ऐसे में बच्चे में इंसुलिन बनने से उसके दिल, मस्तिष्क सहित दूसरे अंग प्रभावित हो सकते हैं। इसके अलावा गर्भ में बच्चे का आकार बढ़ सकता है। महिलाओं की समय से पूर्व डिलीवरी, गर्भपात, निजी अंगों से पानी आना, मां को बीपी, थाइरॉइड होना सहित अन्य दिक्कत हो सकती है।

जन्म के बाद बच्चे में हो सकती है यह दिक्कत

– सांस लेने में परेशानी

– अचानक ब्लड शुगर कम होना

– पीलिया

– आईसीयू में रखने की जरूरत

– मोटापा

– मेटाबॉलिक सिंड्रोम

गर्भावस्था में ब्लड शुगर 110 से कम व 110 मिलीग्राम प्रति डेसी लीटर से अधिक हो तो विभिन्न रोग व समस्याओं से पीड़ित गर्भवती महिलाएं (फीसदी में)

बीमारी                         110 से कम                          110 से अधिक

हाइपरटेंशन                   8.61                                  27.68

आइएचपीसी                  20.65                                 26.80

डिस्लिपिडेमिया              2.17                                   22.68

गर्भपात की इतिहास        6.61                                   31.96

ब्लड शुगर 110 से कम व ब्लड शुगर 110 से अधिक वाली गर्भवती महिलाओं के प्रसव के दौरान ढाई किलो से कम और 3.45 किलो से अधिक वहन वाले बच्चे (फीसदी में)

बच्चे का वजन                                 110 से कम                       110 से अधिक

2.5 किलो से कम                             17.39                             39.18

3.45 किलो से अधिक                        9.78                              30.93

 

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