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नई द‍िल्‍ली. राम मोक्ष दिलाते हैं, यह बात तो प्राचीन समय से सभी रामभक्‍त मानते ही रहे हैं. लेकिन, भाजपा ने यह साबित कर दिखाया है कि वह कलियुग में भी सत्‍ता दिला सकते हैं. लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था में भी! जनता के द्वारा चुनी गई सत्‍ता!! वैसे, प्राचीन रामकथा में भी जिक्र है कि उन्‍होंने सुग्रीव और विभीषण जैसे अपने भक्‍तों को सत्‍ता दिलाई थी. जब से भाजपा ने राम नाम के दम पर सत्‍ता पाई है, तब से बाकी पार्ट‍ियां भी मौके को भुनाने की कोशिश में लगी ही रहती हैं. उनकी दाल उतनी नहीं गल रही, फिर भी. वैसे, राजनीति में धर्म को लाने की परंपरा भाजपा के जन्‍म से काफी पुरानी है.

जब राजेंद्र प्रसाद ने धोए ब्राह्मणों के पैर
हमारे संविधान में राजनीति और धर्म का घालमेल करने की मनाही है, पर नेताओं की गतिविधियों में ऐसा विरले ही दिखता है और, यह कोई आज की समस्‍या नहीं है. आजादी के समय से ही चली आ रही है. 1951 में राष्‍ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने बनारस में 251 ब्राह्मणों के चरण धोकर पानी पीया था. संस्‍कृत के प्रकांड विद्वान डेवुडु नरसिंह शास्‍त्री को जब पता चला कि उन्‍हें भी इस कार्यक्रम के लिए बुलाया जाएगा तो उन्‍होंने राष्‍ट्रपति पद की गरिमा का ध्‍यान रखते हुए खुद को इस कार्यक्रम से अलग रखा था. राम मनोहर लोहिया ने इसके लिए शास्‍त्री की तारीफ की थी और राजेंद्र प्रसाद के लिए लिखा था कि एक राष्‍ट्रपति द्वारा सार्वजनिक रूप से इस तरह दूसरों के पैर धोना बड़ा भद्दा काम है. हालांकि, इस घटना के एक साल बाद ही राजेंद्र प्रसाद और विट्ठल भाई पटेल सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार कार्यक्रम में भी शामिल हुए थे.

2016 में तब भी विवाद हुआ था हरियाणा की भाजपा सरकार ने जैन मुनि तरुण सागर को विधानसभा में भाषण देने के लिए बुलवाया था.

ताजा मामला: आप की राजनीति में राम और हनुमान
राम को भुनाने से जुड़ा ताजा घटनाक्रम दिल्‍ली का है. यहां नई मुख्‍यमंत्री आतिशी ने 23 सितंबर को जब पदभार संभाला तो अरविंद केजरीवाल को भगवान राम से जोड़ते हुए बगल में एक खाली कुर्सी रखवाई. उन्‍होंने कहा कि जैसे भरत ने सिंहासन पर राम का खड़ाऊं रख कर राज चलाया था, वैसे ही मैं भी चार महीने सरकार चलाऊंगी. मार्च में जब आतिशी ने बजट पेश किया था, तब भी बजट भाषण में बार-बार ‘राम’ और ‘राम राज्‍य’ का जिक्र किया था.

पिछले कुछ समय से आम आदमी पार्टी को जब भी मौका मिलता है वह भगवान को राजनीति में घसीटती रही है. आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल का हनुमान मंदिर जाना अक्‍सर सुर्ख‍ियों में रहता है. केजरीवाल जब करीब छह महीने बाद तिहाड़ जेल से आए तब भी वहां गए थे.

आतिशी के मुख्‍यमंत्री बनने के बाद की गई पहली जनसभा में भी केजरीवाल ने अपनी जेल यात्रा को राम के वनवास से जोड़ा. जमानत पर रिहाई के बाद जब उन्‍होंने इस्‍तीफे का ऐलान किया तब भी कहा कि राम के वनवास से लौटने के बाद सीता मइया को अग्निपरीक्षा देनी पड़ी थी, मैं भी अग्‍न‍िपरीक्षा देने जा रहा हूं. अयोध्‍या में जब राम मंदिर में प्राण प्रतिष्‍ठा होनी थी, उन दिनों आप के नेता हर मंगलवार सुंदरकांड या हनुमान चालीसा का पाठ करवाया करते थे.

भाजपा के साथी भी भगवान भरोसे!
विरोधी तो विरोधी, भाजपा के साथी भी ‘राम नाम’ को सत्‍ता की सीढ़ी बनाते जा रहे हैं. अगर किसी को ‘राम नाम’ में ज्‍यादा संभावना नहीं लग रही तो वह ‘अपना भगवान’ भी चुन रहा है.

टीडीपी और तिरुपति का प्रसाद
‘सायबराबाद’ बसाने और तकनीकी क्षेत्र में कायाकल्‍प कर देने की छवि बना चुके चंद्र बाबू नायडू ने इस बार मुख्‍यमंत्री बनने के कुछ ही महीने बाद पिछली सरकार को घेरते हुए तिरुपति मंदिर के प्रसाद (लड्डू) में जानवरों की चर्बी के इस्‍तेमाल का आरोप लगा कर देश भर में माहौल गरम कर दिया. उधर, नीतीश कुमार ने अयोध्‍या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्‍ठा कार्यक्रम के आठ महीने बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राम मंदिर बनवाने के लिए तारीफ की. लगे हाथ नीतीश ने सीतामढ़ी में पुनौरा धाम (सीता की जन्‍मस्‍थली) को विकसित करने की बिहार सरकार की कोशिशों का भी बखान किया.

नायडू ने भले ही स्‍थानीय स्‍तर पर अपने राजनीतिक विरोधी को घेरने के लिए तिरुपति का मुद्दा उठाया हो, लेकिन बीजेपी के कई नेता इसे हिंदू वोट बैंक को लुभाने की नीति के तौर पर देख रहे हैं. तिरुपति मंदिर की ख्‍याति आंध्र ही नहीं, देश भर में है। और करोड़ों हिंदुओं की इससे आस्‍था जुड़ी हुई है. कई नेताओं की राय है कि नायडू ने अगर राजनीतिक फायदे को ध्‍यान में नहीं रख कर भी तिरुपति के प्रसाद का मामला उठाया तो भी उन्‍हें इसका राजनीतिक फायदा मिले बिना नहीं रहेग.

नीतीश को सीता मइया से आस
उधर, नीतीश की पीएम को चिट्ठी और सीतामढ़ी से अयोध्‍या के बीच सीधी रेल सेवा की मांग से भी बीजेपी के कुछ नेता चौकन्‍ने हो गए हैं. उन्‍हें लगता है कि नीतीश कुमार कहीं भाजपा के हिंदू वोट बैंक में सेंधमारी न कर लें। राज्‍य में करीब साल भर बाद ही विधानसभा चुनाव होने हैं.

भाजपा जैसी सफलता किसी को नहीं
भाजपा ने 1986 में राम मंदिर का मुद्दा पकड़ा. पार्टी को इस मुद्दे में बड़ी संभावना दिखी. लिहाजा 1989 में पालमपुर अधिवेशन में राम मंदिर आंदोलन को समर्थन देने का बाकायदा प्रस्‍ताव पारित किया गया. उस समय लाल कृष्‍ण आडवाणी भाजपा अध्‍यक्ष थे. उन्‍हें इस मुद्दे में इतनी संभावना दिखी कि उन्‍होंने सोमनाथ से अयोध्‍या तक रथयात्रा करने का प्‍लान बना लिया. 25 सितंबर, 1990 से उनकी यह यात्रा शुरू भी हो गई. इसके बाद भाजपा का चुनावी प्रदर्शन 1984 की दो सीटों की तुलना में लगातार सुधरता ही गया और अंतत: वह सरकार बनाने तक की स्‍थ‍िति में आ गई.

मंदिर को मुद्दा बना कर राजनीति करने का फायदा जितना भाजपा को हुआ, शायद उसे देख कर ही बाकी पार्ट‍ियां भी राजनीति में धर्म को घुसाने लगीं. पर, भाजपा जैसा फायदा किसी को नहीं मिला. 2024 के लोकसभा चुनाव में तो यह साबित हुआ कि अब भाजपा को भी इसका फायदा नहीं मिला. अयोध्‍या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्‍ठा के बाद हुए इस पहले लोकसभा चुनाव में भाजपा फैजाबाद (जिसके अंतर्गत अयोध्‍या आती है) तक की सीट हार गई। इसके बावजूद पार्ट‍ियां धर्म के नाम पर राजनीति चमकाने से बाज नहीं आ रहीं.

Tags: Chandrababu Naidu, Nitish kumar, Politics news

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