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मथुरा: लीला पुरुषोत्तम श्री कृष्ण का व्यक्तित्व इतना व्यापक और मोहक रहा है कि प्रकृति, पुरुष, जड़ और चैतन्य सभी को आकृष्ट किया है. राजकीय संग्रहालय में आज भी श्री कृष्ण की लीलाओं का बखान आपको देखने को मिलेगा. यहां पर करीब 2000 साल पुरानी प्रतिमाएं आज भी मौजूद हैं.

कृष्ण की लीलाओं का अद्भुत चित्रण
ब्रज भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं से ओतप्रोत है. यहां पर लीला पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण का कण-कण में लीलाओं का बखान है. मथुरा के संग्रहालय में आज भी श्री कृष्ण की लीलाओं की झलक आपको देखने को मिलेगी. यहां पर तकरीबन 2000 साल पुरानी प्रतिमाओं में कृष्ण की लीलाओं को उकेरा गया है. पत्थर की इस मूर्ति में कृष्ण के जन्म की कहानी दर्शाई गई है.

लीलाओं से जुड़े हुए साक्ष्य आज भी
राजकीय संग्रहालय में गैलरी सहायक के पद पर तैनात हरी बाबू से लोकल18 ने जब बात की, तो उन्होंने बताया कि कृष्ण की लीलाओं से जुड़े हुए साक्ष्य आज भी यहां रखे हुए हैं. इस पत्थर पर जो कलाकृति बनाई गई है, वह श्री कृष्ण के जन्म के बाद वासुदेव जी उन्हें यमुना से होते हुए गोकुल ले जाते हुए दिखाती है. हरी बाबू ने बताया कि इस पत्थर की मूर्ति में आपको वासुदेव जी श्री कृष्ण को सिर पर टोकरी में रखकर ले जाते हुए नजर आ रहे हैं. उनके ऊपर कालिया नाग उनकी छत्रछाया बनाकर चल रहा है. उन्होंने यह भी बताया कि यमुना का यह दृश्य इसमें मछली और मगरमच्छ भी आपको देखने को मिलेंगे.

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कृष्ण का व्यापक व्यक्तित्व
लोक-नायक लीला पुरुषोत्तम श्री कृष्ण का व्यक्तित्व इतना व्यापक और मोहक रहा है कि उसने प्रकृति, पुरुष, जड़ और चैतन्य सभी को आकृष्ट किया है. वह स्वयं सोलह कलाओं के अवतार और चौसठ ललित-कलाओं के ज्ञाता थे. यही कारण है कि उनकी जन्मभूमि केवल धर्म, आध्यात्म या संस्कृति का ही नहीं, बल्कि कलाओं का भी केन्द्र रही है, और इस नाते इस भूमि का कला-भूमि होना सहज ही है.

कृष्ण की मूर्तियों का प्राचीनतम साक्ष्य
पंजीयन संख्या: 17.1344, काल: लगभग प्रथम शती ईस्वी, गताश्राम, नारायण मन्दिर, मथुरा. इस शिलापट्ट पर वसुदेव अपने सिर पर एक टोकरी में शिशु कृष्ण को रखकर यमुना नदी पार करते हुए दिखाए गए हैं. मछली, कछुआ तथा मगर से युक्त नदी का सजीव चित्रण यथार्थ किया गया है. यह भगवान श्री कृष्ण के जन्म का पुरातत्व में प्राचीनतम साक्ष्य है. यह कुषाण काल का शिलाखण्ड है, जिसमें भगवान के जन्म का वर्णन किया गया है.

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